दरअसल, नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की इंदौर विशेष पीठ ने हाल ही में महेश्वर बांध प्रोजेक्ट को पूरी तरह बंद करते हुए बांध के ढांचे, टरबाइन, अधिग्रहित जमीन सहित लगभग 6 हजार करोड़ की पूरी संपत्ति को नीलाम करने का फैसला दिया है. एनसीएलटी के इस फैसले जहां मध्य प्रदेश सरकार को बड़ा झटका दिया है तो वही उन हजारों लोगों की उम्मीद पर भी पानी फिर गया है जो इस डेम से रोजगार मिलने की आस लगाए बैठे थे.
लगात से कई गुना पैसा लगाया
साल 1992-93 में इस बांध की नींव रखी गई. मंडलेश्वर में नर्मदा नदी पर इस बांध का निर्माण शुरू हुआ. निर्माण का काम एस कुमार्स कंपनी को दिया गया. 400 मेगावाट बिजली यहां बनाई जानी थी. बजट की शुरुआती लागत 400 करोड रुपए के लगभग थी. लेकिन निर्माण कंपनी शुरू से ही विवादों में रही और कई बार इस प्रोजेक्ट का काम रोका गया. यह सिलसिला लगातार चलता रहा, कई बार काम शुरू हुआ फिर बंद हुआ. धीरे-धीरे प्रोजेक्ट की लागत बढ़ती गई और करीब सात से 8000 करोड़ तक पहुंच गई.
प्रोजेक्ट की लागत से कई गुना अधिक पैसा इस बांध को बनाने में लगाने के बावजूद यह बांध शुरू नहीं हो सका. इसलिए कंपनियों ने भी पैसा लगाने से मना कर दिया. निर्माण कंपनी एस कुमार ने भी हाथ खड़े कर दिए. आखरी बार 2016 में इस प्रोजेक्ट पर मेंटेनेंस का काम हुआ था. उसके बाद से आज तक किसी ने इस प्रोजेक्ट की ओर मुड़ कर नहीं देखा. जबकि इस प्रोजेक्ट का काम उस समय पूरी तरह रोक दिया, जब यह प्रोजेक्ट बिजली बनाने की क्षमता रखता था.
61 गांवों की पुनर्वसावट बनी वजह
लेकिन इस बांध के शुरू नहीं होने के पीछे सबसे बड़ी वजह डूब प्रभावित गांवों की पुनर्वसावट, उनका विस्थापन नहीं होना रही है. करीब 61 गांव ऐसे हैं, जिन्हें मुआवजा नहीं मिला, पुनर्वास नहीं मिला. इसमें आज भी इन गांवों के लोग दो प्रभावित क्षेत्रों में ही निवास कर रहे हैं. इन गांवों को खाली नहीं कराया जा सका. यह डेम देश के बड़े बांधो में से एक है. इसमें 27 गेट लगे है.
बांध शुरू करने से पहले इन लोगों को मुआवजा और पुनर्वसावट की मांग के चलते नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेघा पाटकर ने आंदोलन भी किया था. इस आंदोलन का नतीजा रहा की, तैयार डेम से बिजली नहीं बन सकी और डेम शुरू नहीं हुआ. साल 2022 में पॉवर फाइनेंस कंपनी की याचिका पर ट्रिब्यूनल में सुनवाई हुई. समाधान के लिए एक टीम नियुक्त की. समाधान के लिए टीम को 180 दिन का समय दिया गया. इस बीच दम की वर्तमान स्थिति, कर्ज, मुआवजा राशि, कर्मचारियों की वेतन राशि का आंकलन कर प्रोजेक्ट को बेचने की कार्रवाई की जानी थी.
28 महीने में भी नहीं निकला समाधान
ट्रिब्यूनल द्वारा दी गई समय अवधि को 7 से 8 बार बढ़ाया गया. लगभग 28 महीने बीत जाने के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला. टीम ने फिर एक बार समय अवधि बढ़ाने की अर्जी लगाई लेकिन ट्रिब्यूनल ने साफ तौर पर यह कह दिया कि अब और समय बढ़ाना कर्जदारों के हित में सही नहीं है. और इसी के साथ ट्रिब्यूनल ने इस प्रोजेक्ट के संपत्ति को नीलाम करने का फैसला सुना दिया. इसमें बांध में लगी टरबाइन, ढांचा, विद्युत घर, उपकरण, अधिग्रहित जमीन सहित तमाम सम्पत्ति शामिल है.
इन कंपनियों का अटका है पैसा
आपको बता दें कि, परियोजना में पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन, आरईसी लिमिटेड, भारतीय जीवन बीमा निगम, आईडीबीआई बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, हुडको, एडलवाइस एआरसी, एसबीआई, जनरल इंश्योरेंस कॉर्पोरेशन, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस, नेशनल इंश्योरेंस कंपनी, ओरिएंटल इंश्योरेंस, न्यू इंडिया एश्योरेंस समेत 17 से ज्यादा कंपनियों की भारी-भरकम रकम अटकी हुई है. नीलामी राशि से इन कंपनियों का पैसा लौटाया जाएगा.