महोगनी एक विदेशी प्रजाति की कीमती लकड़ी है, जिसकी मांग न केवल भारत में बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी बहुत अधिक है. यह लकड़ी फर्नीचर, सजावटी वस्तुएं, म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट्स और भवन निर्माण में बड़े पैमाने पर उपयोग की जाती है. इसकी कीमत बाजार में सागवान (टीक वुड) से भी अधिक होती है, और यही कारण है कि यह खेती किसानों के लिए एक बेहतरीन निवेश बनकर उभर रही है.
वह आगे बताते हैं कि बहुत कम किसान इस ओर ध्यान दे रहे हैं जबकि इसमें कम देखरेख, पानी और श्रम की आवश्यकता होती है. महोगनी के साथ-साथ मलाबार नीम और बर्मा टीक जैसी प्रजातियां भी ऐसी हैं जो 3 से 4 साल में उपयोग लायक तैयार हो जाती हैं.
मलाबार नीम की बात करें तो इसका पौधा पहले साल 5 से 6 फीट का हो जाता है और अगली बारिश तक 15 से 20 फीट ऊंचा हो सकता है. यह लकड़ी प्लाईवुड उद्योग में अत्यधिक उपयोगी है और 4 वर्षों में किसान को बाजार में अच्छा मूल्य दिलवा सकती है. बी.डी. संखेरे किसानों को सलाह देते हैं कि –”ज़रूरी नहीं है कि किसान अपनी पूरी जमीन पर ये पेड़ लगाएं. वे चाहें तो खेत की मेडों पर, किनारों पर या अनुपयोगी भूमि पर इसकी रोपाई कर सकते हैं. इससे उनके पारंपरिक खेती पर कोई असर नहीं पड़ेगा, लेकिन भविष्य के लिए एक स्थायी आमदनी का स्रोत बन जाएगा.”
महोगनी की खेती के लिए टिश्यू कल्चर से तैयार पौधे बाजार में उपलब्ध हैं, जो अच्छी गुणवत्ता और तेज़ वृद्धि दर वाले होते हैं. यदि इसे सुनियोजित तरीके से किया जाए, तो किसानों को सालों भर की मेहनत से कहीं अधिक कमाई इसी एक फसल से हो सकती है. कहा जा सकता है कि महोगनी और मलाबार नीम जैसे विकल्प न केवल कृषि क्षेत्र में विविधता लाने में मदद करेंगे बल्कि जलवायु परिवर्तन और भूमि क्षरण जैसे संकटों से निपटने में भी सहायक होंगे.किसान यदि समय रहते इस ओर कदम उठाएं तो आने वाले वर्षों में उनकी आर्थिक स्थिति में बड़ा बदलाव संभव है. यह समय है परंपरागत सोच से आगे बढ़ने का — गेहूं और चना छोड़िए, और महोगनी जैसी वैकल्पिक खेती से बनाईए भविष्य को हराभरा और आर्थिक रूप से समृद्ध.