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Khansi Ka Desi Ilaz: खांसी और सांस की बीमारी से राहत पाने के लिए बघेलखंड के लोग सदियों से बमूर (बबूल) की छाल का इस्तेमाल करते आए हैं. 63 वर्षीय रामचरण दाहिया ने गजब का तरीका बताया…
हाइलाइट्स
- बबूल की छाल खांसी और सांस की बीमारी में असरदार है
- बबूल की छाल को चूसने से गले की खराश में राहत मिलती है
- बबूल की छाल का उपयोग मुख एवं दंत स्वच्छता में भी होता है
63 साल से आजमाया गया देसी नुस्खा
लोकल 18 से बातचीत में औषधीय पौधों और पारंपरिक चिकित्सा का गहरा ज्ञान रखने वाले रामचरण दाहिया बताते हैं कि वे 63 वर्ष के हैं. उन्होंने कभी खांसी या सांस की तकलीफ के लिए डॉक्टर का रुख नहीं किया. उन्होंने बमूर की छाल से ही राहत पाई और यह तरीका उन्होंने अपने माता-पिता से सीखा और उन्होंने अपने पूर्वजों से.
आगे बताया, बमूर की छाल को धोकर छोटे टुकड़ों में काटकर मुंह में रखा जाता है. धीरे-धीरे चूसा जाता है. यह तरीका गले की खराश, सूखी खांसी और सांस की तकलीफ में काफी कम समय में राहत देता है. बघेलखंड में यह तरीका न सिर्फ बुजुर्गों में बल्कि आज भी कई ग्रामीणों द्वारा अपनाया जा रहा है.
विशेषज्ञ भी मानते हैं फायदेमंद
विशेषज्ञों के अनुसार बबूल की छाल का उपयोग सिर्फ खांसी में ही नहीं, बल्कि मुख एवं दंत स्वच्छता, त्वचा रोग और जलन से हुई चोटों के इलाज में भी किया जाता है. इसका कसैला स्वाद और जीवाणुरोधी गुण इसे प्राकृतिक उपचार का एक बेहतरीन विकल्प बनाते हैं. भारत में सदियों से बबूल की टहनियों का उपयोग दातुन के रूप में भी किया जाता रहा है.
पुरानी परंपराएं, आज भी उतनी ही कारगर
बघेलखंड की यह परंपरा एक बार फिर यह साबित करती है कि हमारे आयुर्वेदिक और देसी ज्ञान में आज भी अनेक समस्याओं का समाधान छुपा हुआ है. बमूर की छाल न केवल एक सस्ती और सुलभ औषधि है बल्कि इसके कोई साइड इफेक्ट्स भी नहीं हैं.
Disclaimer: इस खबर में दी गई दवा/औषधि और स्वास्थ्य से जुड़ी सलाह, एक्सपर्ट्स से की गई बातचीत के आधार पर है. यह सामान्य जानकारी है, व्यक्तिगत सलाह नहीं. इसलिए डॉक्टर्स से परामर्श के बाद ही कोई चीज उपयोग करें. Local-18 किसी भी उपयोग से होने वाले नुकसान के लिए जिम्मेदार नहीं होगा.