वर्तमान मौसम परिस्थितियों में अधिक गर्मी और उमस है. यह मौसम इस कीट के फैलाव को बढ़ावा देता है. इस वर्ष बारिश की अनियमितता और तापमान में उतार-चढ़ाव ने मक्का की फसल को पहले ही कमजोर कर दिया था, जिसका फायदा इन कीटों ने उठा लिया. नवनीत रेवापाटी बताते हैं कि इस बार निमाड़ के किसानों ने बड़ी उम्मीदों से मक्का लगाया था. लागत भी अधिक आई और मजदूरी भी लेकिन अब खेतों में फैलते इस कीट ने चिंता बढ़ा दी है. कई जगहों पर इल्ली ने पूरी-पूरी कतारें साफ कर दी हैं, जिससे उपज में भारी गिरावट की आशंका है.
2. क्लोरैंट्रानिलीप्रोल 18.5%- 60 मिली प्रति एकड़ के हिसाब से छिड़काव करें.
4. क्लोरोपायरीफॉस 20%- कीट नियंत्रण में सहायक है.
विशेषज्ञ यह भी सलाह देते हैं कि इन रसायनों का छिड़काव तभी करें, जब फसल की ऊंचाई ज्यादा न हो. यदि फसल बड़ी हो गई हो, तो पूर्ण सुरक्षा किट पहनकर ही छिड़काव करें. छिड़काव के दौरान शरीर को ढकना जरूरी है ताकि कोई स्वास्थ्य जोखिम न हो. किसानों को सलाह दी जा रही है कि वे फसल की नियमित निगरानी करें. सुबह और शाम फसल के पत्तों और केंद्र में कीट के अंडों या इल्ली की उपस्थिति देखें. यदि समय पर कीट नजर आएं, तो तुरंत विशेषज्ञ से संपर्क कर रसायनों का छिड़काव करें.
सरकार से अपेक्षा
किसान संगठनों की मांग है कि कृषि विभाग गांव-गांव जाकर किसानों को प्रशिक्षित करें और उन्हें अनुदान पर कीटनाशक उपलब्ध कराए. साथ ही जिन किसानों की फसल पूरी तरह नष्ट हो गई है, उनके लिए मुआवजे की भी व्यवस्था की जाए. बहरहाल फसल की रक्षा अब केवल कीटनाशकों पर ही नहीं बल्कि किसान की जागरूकता और तत्परता पर भी निर्भर करती है. यदि समय पर उचित उपाय किए गए, तो इस आपदा को टाला जा सकता है लेकिन लापरवाही की कीमत पूरे सीजन की मेहनत को खोकर चुकानी पड़ सकती है.