आलीराजपुर के चंद्रशेखर आजाद नगर में 21 जुलाई को दो फर्जी क्लिनिकों पर प्रशासन ने संयुक्त रूप से छापा मारा। हालांकि, इस कार्रवाई के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं, जिससे फर्जी डॉक्टरों को बचाने की कोशिश का संदेह पैदा हो रहा है।
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एसडीएम प्रियांशी भंवर, तहसीलदार जितेंद्र सिंह तोमर, डॉक्टर राहुल जायसवाल, थाना प्रभारी शिवराम तरोले और तीन पटवारी इस कार्रवाई में शामिल थे। एक क्लिनिक पर छापा पड़ने पर फर्जी डॉक्टर ने खुद को और मरीजों को अंदर बंद कर लिया। प्रशासन ने कई घंटों के इंतजार के बाद कटर मशीन से ताला काटकर मरीजों को बाहर निकाला और उन्हें इलाज के लिए सरकारी अस्पताल भेजा। अधिकारियों ने मौके से दवाएं और उपकरण जब्त किए।
इस कार्रवाई में एक बड़ी लापरवाही सामने आई है। नियमों के अनुसार, जब्त की गई दवाओं की सूची, उनकी संख्या और निर्माता कंपनियों के नाम के साथ पंचनामा नहीं बनाया गया। इसके अलावा मौके पर मौजूद अधिकारियों, कर्मचारियों और गवाहों के हस्ताक्षर भी पंचनामे पर नहीं लिए गए। हालांकि, दो पटवारियों ने पूरी वीडियोग्राफी की, जिसमें ताला तोड़ने से लेकर मरीजों से बातचीत तक सब कुछ रिकॉर्ड हुआ।
सबसे बड़ा विवाद फरियादी को लेकर है। इस कार्रवाई में मौके पर मौजूद किसी भी अधिकारी को फरियादी नहीं बनाया गया, बल्कि झिरन में पदस्थ डॉक्टर रितेश गाड़रिया को फरियादी बनाया गया, जबकि वह मौके पर मौजूद ही नहीं थे। उनकी शिकायत पर 22 जुलाई को फर्जी डॉक्टरों के खिलाफ मध्य प्रदेश आयुर्वेदिक अधिनियम की धारा 24, मध्य प्रदेश उपचार संबंधी अधिनियम और भारतीय न्याय संहिता की धारा 318 के तहत रिपोर्ट दर्ज की गई है।
जब डॉ. गाड़रिया से बात की गई तो उन्होंने दावा किया कि दोनों मामलों की जांच उन्होंने की थी और एफआईआर भी उन्होंने ही दर्ज कराई। मौके पर मौजूद अधिकारियों को दरकिनार कर एक गैर-मौजूद व्यक्ति को फरियादी बनाने से इस बात का संदेह पैदा होता है कि कहीं न कहीं फर्जी डॉक्टरों को बचाने की कोशिश की जा रही है।
कार्रवाई के दिन की तस्वीरें

