अच्छी बारिश और फसल के लिए अनोखी पूजा, 8 दिन पहले से होती तैयारी

अच्छी बारिश और फसल के लिए अनोखी पूजा, 8 दिन पहले से होती तैयारी


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Balaghat News: नृत्य के जरिए आपसी भाईचारा दिखाते हुए आराध्य देव से अच्छी बरसात, अच्छी फसल और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. इस दौरान पारंपरिक गीतों के साथ भुजरियों का विसर्जन किसी तालाब या नदी में किया जाता ह…और पढ़ें

बालाघाट. मध्य प्रदेश का बालाघाट जिला एक आदिवासी बाहुल्य जिला है. आदिवासियों को प्रकृति पूजक भी कहा जाता है. ऐसे में यहां होने वाले हर तीज-त्योहारों का सीधा जुड़ाव प्रकृति से होता है. इसी तरह का एक त्योहार है भुजरिया, जिसे पूरे जिले में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इसे यहां पर कजलिया भी कहते हैं. इस पर्व को रक्षाबंधन के अगले दिन ही शाम के वक्त मनाया जाता है, जिसमें महिलाएं गेहूं के पौधों को लेकर नदी या तालाब में विसर्जित करने के लिए जाती हैं. स्थानीय लोग त्योहार से 8 दिन पहले ही इसे बोते हैं. अच्छी बारिश, बेहतर फसल और सुख-समृद्धि के लिए भुजरिया पर्व मनाया जाता है. इसे कजलियों का पर्व भी कहा जाता है. कजलिया पर्व प्रकृति प्रेम और खुशहाली से जुड़ा है. आइए जानते हैं इस पर्व के बारे में कि आखिर आदिवासी बाहुल्य अंचलों में कजरिया (भुजरिया) पर्व कैसे मनाया जाता है.

रक्षाबंधन के अगले दिन भुजरिया पर्व को ग्रामीण अंचलों में मनाया जाता है. यहां पर पारंपरिक गीतों के साथ-साथ आदिवासियों की खास प्रस्तुति शैला नृत्य की झलक देखने को मिलती है. यह नृत्य खुशहाली की कामना के लिए किया जाता है. नृत्य के माध्यम से आपसी भाईचारा दिखाते हुए आराध्य देव से अच्छी बारिश, अच्छी फसल और सुख-समृद्धि की कामना की जाती है. इस दौरान पारंपरिक गीतों के गायन के साथ भुजरियों का विसर्जन किसी नदी या तालाब में किया जाता है. इसके बाद सभी लोग एक-दूसरे को भुजरिया देकर शुभकामनाएं देते हैं.

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अच्छी बारिश और फसल के लिए अनोखी पूजा, 8 दिन पहले से होती तैयारी

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.



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