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ये कहना है कि शिशुरोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील हथगेले का। वह शहडोल के जिला अस्पताल में पोस्टेड हैं। कहते हैं- मैंने अपने करियर में ऐसा केस नहीं देखा। दरअसल, 22 जुलाई को सोहागपुर के पिपरिया गांव की रहने वाली तीन साल की कंचन को उसके माता-पिता अस्पताल लेकर पहुंचे थे।
उन्होंने डॉक्टरों को बताया कि सोते समय उसे तीन बार करैत सांप ने काटा है। कंचन की हालत बेहद खराब थी। उसे समय पर इलाज नहीं मिलता तो शायद उसकी जान बचना मुश्किल था। कंचन को डॉक्टरों ने 11 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा और 20 दिन के ट्रीटमेंट के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी मिली, लेकिन उसकी आवाज चली गई है।
डॉक्टरों का कहना है कि समय के साथ उसकी आवाज वापस आएगी। पढ़िए तीन साल की बच्ची के साथ डॉक्टरों ने कैसे मौत से जंग जीती ।
डॉक्टर बोले- बच्ची जब आई तब धड़कन बंद होने वाली थी कंचन का ट्रीटमेंट करने वाले डॉक्टर सुनील हथगेले बताते हैं कि जब कंचन अस्पताल आई तब उसकी हालत बेहद गंभीर थी। उसके शरीर में जहर तेजी से फैल रहा था। उसके दोनों हाथ और पैरों में पैरालिसिस हो चुका था और वह ठीक से सांस भी नहीं ले पा रही थी। ऑक्सीजन सैचुरेशन लगातार नीचे गिर रहा था।
उसे हमने आईसीयू में शिफ्ट किया और एंटी स्नेक वेनम इंजेक्शन के 20 डोज दिए। इसके साथ ही सपोर्टिव ट्रीटमेंट भी शुरू किया। करीब 6 घंटे आब्जर्वेशन में रखने के बाद भी उसकी हालत गंभीर बनी हुई थी, जिसे देखते हुए 10 एंटी स्नेक वेनम इंजेक्शन फिर लगाए। इसके 24 घंटे के भीतर 10 डोज और दिए गए।
इस तरह से 40 वायल एटी स्नेक वेनम दिया गया। सामान्यतः गंभीर मरीज को इसके 10 से 20 वायल ही दिए जाते हैं। बच्ची को सांप ने तीन बार काटा था, शरीर में जहर की मात्रा बहुत ज्यादा फैल गई थी। करैत सांप में न्यूरो टॉक्सिन जहर पाया जाता है। न्यूरो टॉक्सिन वेनम नर्वस सिस्टम को प्रभावित करता है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी, लकवा और मृत्यु भी हो सकती है।

10 दिन तक बच्ची ने नहीं किया रिस्पॉन्स डॉ. हथगेले बताते हैं कि सामान्यतः स्नेक बाइट के पेशेंट 5 से 6 दिन में डिस्चार्ज हो जाते हैं। बच्ची ने 10 दिनों तक कोई रिस्पॉन्स नहीं किया। हमने भी उसे वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा था। उसे सारे क्रिटिकल ट्रीटमेंट दिए। इसके बाद भी जब कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला तो लगने लगा कि अब ये बच्ची सर्वाइव नहीं कर पाएगी।
इस पूरे ट्रीटमेंट के दौरान उसे निमोनिया भी हो गया था, मगर हमने हार नहीं मानी। किसी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में जिस तरह से मरीज का रोजाना फॉलोअप लिया जाता है, वैसी ही नजर हमने उस पर रखी।इसका नतीजा ये हुआ कि 11वें दिन बच्ची ने रिस्पॉन्स किया।

11वें दिन कंचन ने रिस्पॉन्स दिया। डॉक्टरों ने वेंटिलेटर सपोर्ट हटाया।
मां बोली- डॉक्टरों ने कहा था कि दुआ करो कंचन की मां गायत्री बताती है कि जब हम उसे अस्पताल लाए तब उसकी हालत काफी गंभीर थी। जब तीन दिन तक उसे होश नहीं आया तो डॉक्टरों ने कहा कि कंचन के बचने की उम्मीद कम है, भगवान से दुआ करो। हम तो भगवान से ही दुआ कर रहे थे, हमारी आस भी टूट रही थी। डॉक्टर्स ने भी उम्मीद नहीं छोड़ी। 11 दिन तक तो वो मशीन पर रही।
12वें दिन उसकी तबीयत ठीक लगी तो उसे मशीन से हटाया। इसके बाद वह अपने से खाने पीने लगी। पूरे 20 दिन तक उसका इलाज चला। 11 अगस्त को हम लोग उसे घर लाए। अभी कैसी स्थिति है? ये पूछने पर गायत्री ने बताया कि अभी खाना खा रही है, दूध पी रही है, लेकिन खुद अपने पैरों पर खड़े नहीं हो पाती। अभी भी उसके शरीर में सुस्ती है। ये शायद जहर का असर है।

बोलने की क्षमता प्रभावित होती है
कंचन की आवाज क्या वापस लौटेगी? भास्कर ने ये सवाल भोपाल के हमीदिया अस्पताल के टॉक्सिकोलॉजी विभाग के डॉ. आशीष जैन से पूछा तो उन्होंने कहा कि करैत का न्यूरो टॉक्सिन जहर सीधे नर्वस सिस्टम पर असर करता है। इसका जहर कोबरा से भी खतरनाक होता है। कॉमन करैत भारत के सबसे जहरीले सांपों में से एक है।
यह रात में चुपचाप काटता है और उसके काटने पर दर्द या सूजन नहीं होती। इसके जहर से सांस लेने वाली मांसपेशियां धीरे-धीरे पैरालाइज्ड हो जाती हैं। बोलने में कठिनाई, और निगलने में दिक्कत जैसे लक्षण दिखते हैं। इससे वोकल नर्व भी प्रभावित होती है। यदि जहर का ज्यादा असर होता है तो पेशेंट बोलने की क्षमता खो सकता है।


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