शूटर्स अपनी गन वेरिफिकेशन के लिए कार और बाइक पर टांगकर लाए। एक खिलाड़ी तो दुबई से पेशी पर पहुंचे।
प्रदेश में शूटर्स को जारी होने वाले लाखों कारतूसों के अपराधियों तक पहुंचने के खुलासे के बाद प्रशासन ने हिसाब मांगना शुरू कर दिया है। सोमवार को 30 शूटर्स को बैरागढ़ एसडीएम दफ्तर में पेशी पर बुलाया। एडि. डीसीपी इंटेलिजेंस दीपक नायक समेत अफसरों ने बंद क
.
शूटर्स का दावा है कि उन्होंने कारतूस नेशनल रायफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया से नियमानुसार खरीदे और रेंज में चलाए हैं। हकीकत यह है कि भोपाल में एक भी ओपन फायरिंग रेंज नहीं है। इसके बावजूद यहां के 77 शूटर्स को हर साल 30.95 लाख कारतूसों का कोटा जारी होता है। इसी वजह से इन कारतूसों की ब्लैक मार्केटिंग व अपराधियों तक पहुंचने का शक है। जांच में 3 लाख से अधिक कारतूसों का हिसाब नहीं मिला है। कई नामी शूटर्स को विदेश से गन और कारतूस लाने की अनुमति है, पर इसकी जानकारी किसी को नहीं है। अब कस्टम विभाग से भी डेटा मांगा जा रहा है।
भास्कर एक्सपर्ट-
बलवीर सिंह, रिटायर्ड आईपीएस (आईबी)
ऐसी बंदूकों का लाइसेंस और कारतूस, कानून-व्यवस्था के लिए बड़ा खतरा
जिन बंदूकों का उपयोग शूटिंग प्रतियोगिताओं में नहीं होता, उनके लाइसेंस और कारतूस जारी करना नियमों की अनदेखी है। यह कानून-व्यवस्था के लिए खतरा है। प्रशासन को केवल मान्य बंदूकों के लिए ही लाइसेंस व कारतूस देना चाहिए, क्योंकि बड़े बोर की बंदूकें अवैध गतिविधियों में इस्तेमाल हो सकती हैं। इसलिए नियम सख्त हों, खेल विभाग शूटर की स्थिति और पुलिस आयुक्त कानून-व्यवस्था पर राय दें, ताकि असली शूटर्स को ही लाइसेंस और कारतूस मिल सकें।
खतरे का हवाला देकर लिया लाइसेंस, फिर बने शूटर… इनमें से कई के खिलाफ शिकार के केस
- जांच में सामने आया है कि भोपाल के 77 शूटर्स के पास 150 से ज्यादा बंदूकें दर्ज हैं। इनमें से 23 शूटर्स के पास ऐसी कई बंदूकें हैं, जिनका किसी भी प्रतियोगिता में उपयोग नहीं होता। प्रदेश और राष्ट्रीय स्तर पर सिर्फ 0.22 रायफल-पिस्टल, 12 बोर रायफल, 30.06 बोर रायफल, 0.32 बोर और 0.22 बोर पिस्टल से मुकाबले होते हैं।
- शहर में 18 शूटर्स के पास 30.06 बोर की 24 रायफल हैं। इनसे ओलिंपिक में कोई प्रतियोगिता नहीं होती, सिर्फ स्थानीय स्तर पर मुकाबले होते हैं। इस राइफल की स्पीड 820 से 910 मीटर प्रति सेकंड तक होती है और यह 300 से 500 मीटर तक सटीक निशाना लगा सकती है। यही कारण है कि इनका इस्तेमाल अक्सर शिकार में होता है। प्रतियोगिताओं में आमतौर पर रिमफायर कारतूस चलते हैं, जबकि भोपाल के शूटर्स के पास सेंटर फायर कारतूस मिले हैं। इनकी स्पीड कहीं ज्यादा होती है और इन्हें खतरनाक माना जाता है।
- भाोपाल में कई लोगों ने पहले खुद को खतरे में बताकर बंदूक का लाइसेंस लिया, लेकिन कारतूसों का हिसाब न दे पाने पर उन्होंने नया रास्ता अपनाया। इन लोगों ने शूटिंग प्रतियोगिताओं में भागीदारी दिखाकर खुद को शूटर घोषित किया। इसी बहाने शूटर्स कोटे से बंदूकें व कारतूस हासिल कर लिए। खुलासा हुआ है कि भोपाल के कुछ शूटर्स पर वन्य प्राणियों के शिकार के मामले भी दर्ज हैं। इनकी हिस्ट्री खंगाली जा रही है।