‘ये मेरी छाती का पीपल…’ छतरपुर की 5 कहावतें, आज भी छोड़ती हैं गहरी छाप

‘ये मेरी छाती का पीपल…’ छतरपुर की 5 कहावतें, आज भी छोड़ती हैं गहरी छाप


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Ajab Gajab News: इस कहावत का मतलब है कि हमारा जो विरोधी है, वह हमारे सामने ही रहता है. वह हर दिन हमसे लड़ाई-झगड़ा करता है. वह दिनभर खुराफात करने में लगा रहता है. हमें परेशान करने में लगा रहता है और सामने वाला उ…और पढ़ें

छतरपुर. मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड की कहावतें बहुत मशहूर हैं. लोग आज भी बोलचाल में इनका इस्तेमाल करते हैं. छतरपुर जिले के रहने वाले मयकू अहिरवार ने लोकल 18 से कहा कि हमारे बुंदेलखंड में बहुत सी कहावतें आज भी कही जाती हैं. ये कहावतें हम अपने बुजुर्गों से सुनते आए हैं. ये कहावतें कम शब्दों की जरूर होती हैं लेकिन इनमें गहरा अर्थ छिपा होता है. इन कहावतों को कहकर आप अपनी बात भी रख लेते थे और सामने वाले को बुरा भी नहीं लगता है. छतरपुर के ग्रामीण अंचलों में आज भी ये कहावतें कही जाती हैं. मयकू छतरपुर जिले में बोली जाने वाली पांच कहावतों के बारे में बताते हैं.

‘यह मेरे छाती का पीपर (पीपल) बन गया है’
इस कहावत का मतलब यह होता है कि हमारा जो विरोधी है, वह हमारे सामने ही रहता है. हर दिन लड़ाई-झगड़ा करता है. दिनभर खुराफात करने में लगा रहता है. परेशान करने में लगा रहता है और सामने वाला उससे लड़ भी नहीं सकता. उसके पास यही एक उपाय है कि वह अपनी जगह छोड़कर चला जाए. इसी के संदर्भ में यह कहावत कही जाती है. घरों में भी कई बार यह कहावत सुनते को मिल जाती है. कई बार पिता अपने बेटे को डांटते समय भी यह कहावत बोलते हैं.

‘बड़े-बड़े बह जाएं, गर्रैं थांए बांधैं’
इस कहावत का अर्थ यह है कि बड़े-बड़े तैराक पानी में बहे जा रहे हैं, वहीं भेड़ यानी गर्रो नें पानी की थांए बांध रखी है. इस कहावत की व्याख्या की जाए, तो इसका मतलब होता है कि जो काम बड़े-बड़े लोग नहीं कर पाते हैं, उस काम को छोटे-मोटे लोग क्या कर पाएंगे. यह कहावत इसी संदर्भ में कही जाती है.

‘मरवा का ग्वाह ऊसर मा आई’
छतरपुर जिले में मरवा मतलब काली मिट्टी वाली अच्छी जमीन और ऊसर यानी की पथरीली जमीन से होता है. ग्वाह का मतलब गोहिल नामक एक जीव से होता है. यहां इस कहावत का मतलब है कि किसी व्यक्ति के अच्छी और आराम वाली जगह छोड़कर ऐसी जगह आकर बस जाना है, जहां कोई सुविधाएं ही नहीं. सिर्फ संघर्ष ही संघर्ष है. गांव में यह कहावत उन व्यक्तियों के लिए कही जाती है, जो बड़े-बड़े शहरों की आराम वाली जिंदगी छोड़कर गांव की संघर्ष वाली लाइफ में आ जाते हैं.

‘जड़त न मारै निश्चय हारै’
यह कहावत जिले में आज भी हर जगह कही जाती है. इस कहावत का मतलब होता है कि अगर हम कोई काम करने वाले हैं, तो उसे तुरंत कर लेना चाहिए. समय बिल्कुल भी बर्बाद नहीं करना चाहिए.

‘गादी में सरसों जमाना’
इस कहावत का मतलब यह होता है कि कोई भी काम तुरंत नहीं हो सकता है. हर काम के लिए समय लगता है. इसी के संदर्भ में यह कहावत कही जाती है. यहां गादी मतलब हथेली होता है. इसका मतलब है कि हथेली में सरसों नहीं जमती है.

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