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मध्य प्रदेश के खरगोन जिले में भी महाराष्ट्र की तर्ज पर अष्टविनायक मंदिर मौजूद हैं. महेश्वर और मंडलेश्वर की धार्मिक नगरी में 7वीं शताब्दी से लेकर पेशवा काल तक में ये मंदिर निर्मित है. जो पुणे और रायगढ़ की तरह ही अष्टविनायक सिद्ध और ऐतिहासिक महत्व रखते हैं. महज 8 किलोमीटर के दायरे में सभी आठ मंदिरों के दर्शन भक्तों को होते हैं.
खरगोन जिले में मौजूद पहला अष्टविनायक, बड़ा गणेश मंदिर है, जिसे बोर गणेश भी कहा जाता है, यह मंदिर महेश्वर में सहस्त्रधारा मार्ग पर मां नर्मदा के तट पर स्थित है. यहां भगवान गणेश अपने दोनों पुत्र लाभ और शुभ के साथ स्थापित है. इस मंदिर में जंगली फल ‘बेर’ चढ़ाने की विशेष परंपरा है.

दूसरा अष्टविनायक सिद्धनाथ गणेश मंदिर है, जो महेश्वर में यत्रिका धर्मशाला के पास स्थित है. इस मंदिर में गणेश जी चंवर घुलाती सेविकाओं के साथ राजसी स्वरूप में विराजमान हैं. यहां दर्शन से राजनीतिक मनोकामनाएं पूर्ण होने की मान्यता है.

तीसरा अष्टविनायक गोबर गणेश मंदिर है. जो महेश्वर में जैन धर्मशाला मार्ग पर स्थित है. इस मंदिर में करीब 900 से ज्यादा साल पुरानी प्रतिमा है, जो गाय के गोबर से निर्मित है. गणेशजी का यह स्वरूप अपने आप में अनोखा और दुर्लभ है.

चौथा अष्टविनायक चिंतामण गणेश मंदिर है, जो महेश्वर के ऐतिहासिक किले की उत्तरी दीवार में बना हुआ है. यह मंदिर किले के निर्माण काल से ही मौजूद है. मराठा सामंत होलकरों ने इस मंदिर की व्यवस्था के लिए सोमाखेड़ी गांव को जागीर में दिया था.

पांचवां अष्टविनायक मोठा गणेश मंदिर है, जो महेश्वर के जूना राम मंदिर परिसर, पेशवा मार्ग पर स्थित है. सात फीट ऊंची सुंदर प्रतिमा में गणेश जी गहनों और सर्प रूप में दिखाई देते हैं. बाजीराव पेशवा इस मंदिर में अनुष्ठान कर युद्ध पर निकलते थे. यहां संतान प्राप्ति की विशेष मान्यता है.

छठा अष्टविनायक षष्टानंद सिद्धेश्वर गणेश मंदिर है, जो मंडलेश्वर के पास चोली गांव में स्थित है. यह 9वीं शताब्दी का परमार कालीन मंदिर है. यहां 11 फीट ऊंची तांत्रिक गणेश प्रतिमा नृत्य करते बालक रूप में स्थापित है. यह विश्व की एकमात्र प्रतिमा भी है.

सातवां अष्टविनायक श्रीधि गणेश मंदिर है, जो मथानिया गांव में चोली-करही मार्ग पर स्थित है. इसका इतिहास अंग्रेजों के काल से जुड़ा है. यहां का गणेश विग्रह पहले महू के ग्राम कुलाला में स्थापित था, लेकिन सैनिक छावनी और फायरिंग रेंज बनने के कारण इसे यहां विस्थापित किया गया.

आठवां अष्टविनायक वरद हस्त गणेश मंदिर. इसे एकदंत गणेश भी कहते है. मंडलेश्वर के काशी विश्वनाथ शिवालय परिसर में स्थित है. पेशवा कालीन इस मंदिर में गणेश जी कमलासन पर विराजमान हैं. एक हाथ में माला, दूसरे में वरद मुद्रा, तीसरे में कमल और चौथे में आयुध धारण किए हैं. बाजीराव पेशवा प्रथम के काका सदाशिवराव पेशवा ने इसकी स्थापना की थी. ऐसी प्रतिमा पूरे भारत में सिर्फ पुणे और मंडलेश्वर में ही देखने को मिलती है.