मध्य प्रदेश में सरकारी विभागों के अंतर्गत 10,000 से अधिक सोसायटी संचालित हो रही हैं। ये सभी संस्थाएं फर्म एंड सोसायटी के अंतर्गत पंजीकृत हैं। लेकिन बीते 12 साल से इनकी तरफ से जानकारी जमा नहीं की जा रही है। इस जानकारी में इन्हें अपने द्वारा किए गए क
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वहीं दूसरी तरफ मप्र में लगभग 1 लाख ऐसी संस्थाएं हैं जो आम जनता द्वारा संचालित होती हैं, पर हर साल धारा 27–28 के तहत जानकारी देने का दबाव रहता है। इन्हें हर साल चालान भरकर अपने चार्टर्ड अकाउंटेंट से ऑडिट करवाकर जानकारी देनी होती है।
जबकि सरकारी संस्थाएं किस तरह से काम कर रही हैं और कितना व किस मद में क्या खर्च कर रही हैं, इसका कोई हिसाब नहीं है। इनमें सभी सरकारी कॉलेजों की समितियां, जन अभियान परिषद की समिति, रोगी कल्याण समिति और शिक्षा विभाग समेत करीब 10,000 से अधिक समितियां हैं।
बड़ी बात यह है कि इन्हें जानकारी देने के लिए फर्म एंड सोसायटी की तरफ से कोई नोटिस भी नहीं भेजा जाता है। इसके पीछे कारण बताया गया कि फर्म एंड सोसायटी में स्टाफ की कमी है। पूरे प्रदेश में लगभग 102 पद स्वीकृत हैं, जिनमें से केवल 50 लोग ही काम कर रहे हैं।
8 लोगों के भरोसे भोपाल संभाग
उद्योग विभाग के अंतर्गत आने वाले फर्म एंड सोसायटी का मामला इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसमें पंजीकृत होने के बाद ही धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संस्थाओं का संचालन हो सकता है। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि ऐसी पंजीकृत संस्थाओं को सांसद और विधायक निधि दी जाती है और नियमित व सही काम करने वाली संस्थाओं को इनकम टैक्स द्वारा टैक्स छूट कैटेगरी में भी शामिल किया जाता है।
नियमानुसार हर तीन साल में संस्था को जानकारी देनी चाहिए, लेकिन पंजीकृत करीब 1.55 लाख संस्थाओं में से केवल 10% ही अपनी जानकारी देती हैं। इनमें भी केवल गैर-सरकारी संस्थाएं शामिल हैं। अकेले भोपाल और नर्मदापुरम संभाग में 42,000 से अधिक संस्थाएं पंजीकृत हो चुकी हैं। इनमें सबसे अधिक धार्मिक, फिर सामाजिक और तीसरे नंबर पर शैक्षणिक संस्थाएं आती हैं।
भोपाल स्थित कार्यालय में कुल 4 लोगों का स्टाफ काम कर रहा है। इसीलिए धारा 32 के तहत जब शिकायत होती है तो उनकी जांच भी नहीं हो पाती। एक जानकारी के अनुसार मप्र में काम करने वाली और फर्म सोसायटी से रजिस्टर्ड होने वाली संस्थाओं में लगभग 12,000 एनजीओ के रूप में काम कर रही हैं। सर्वाधिक शिकायतें भी इनकी ही हैं।