इस ट्रेनिंग में यूपी के 4 सपा सांसदों सहित कुल 10 दिग्गज नेता हिस्सा लेंगे. यहां एमपी के सपाइयों को यूपी की रणनीति का फंडा समझाया जाएगा, ताकि उसी राह पर चलकर प्रदेश में सपा अपना झंडा बुलंद कर सके. वहीं, राजनीतिक गलियारों में चर्चा ये भी शुरू हो गई कि क्या सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत पैठ बनाने की बड़ी प्लानिंग कर रहे हैं?
खजुराहो को ट्रेनिंग स्थल के रूप में चुनना कोई संयोग नहीं है. यह क्षेत्र बुंदेलखंड और विंध्य का हिस्सा है, जहां सपा का पहले से अच्छा प्रभाव रहा है. छतरपुर, टीकमगढ़, निवाड़ी, पन्ना, रीवा, सतना, भिंड, सीधी और बालाघाट जैसे जिलों में पार्टी की जड़ें मजबूत हैं. खजुराहो की एयरपोर्ट कनेक्टिविटी और यूपी-एमपी बॉर्डर की निकटता इसे सुविधाजनक बनाती है. इतना ही नहीं, सपा यहां प्रांतीय कार्यालय भी बना रही है. जमीन खरीदकर निर्माण कार्य शुरू हो चुका है. यह कदम दर्शाता है कि सपा एमपी को सिर्फ चुनावी मैदान नहीं, बल्कि स्थायी आधार बनाने की सोच रही है.
ये सिर्फ प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं…
वहीं, सपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा, “ये सिर्फ प्रशिक्षण कार्यक्रम नहीं, बल्कि पार्टी की नीतियों को जनता तक पहुंचाने का माध्यम है. हम किसानों, महिलाओं और भ्रष्टाचार के मुद्दों पर लगातार आवाज उठा रहे हैं. नगरीय निकाय चुनावों में हमारा प्रदर्शन मजबूत होगा. 2028 में हम तीसरा विकल्प नहीं, बल्कि सरकार बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं.” यह बयान सपा की महत्वाकांक्षा को जाहिर करता है.
समाजवादी पार्टी ने पहले भी मध्य प्रदेश में चुनाव जीते हैं, लेकिन बहुत कम सीटें. खासतौर पर, पार्टी ने 1998 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में 4 सीटें और 2003 में 7 सीटें जीती थीं. उसके बाद, 2008 में सिर्फ 1 सीट और 2018 में फिर से 1 सीट जीतकर इसका प्रदर्शन गिरता गया. हाल के चुनावों, जैसे कि 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कोई सीट नहीं जीती और केवल 0.46% वोट शेयर हासिल किया, जिससे मध्य प्रदेश में उसके प्रभाव में उल्लेखनीय गिरावट आई.
इंडिया गठबंधन की प्लानिंग तो नहीं!
ट्रेनिंग में यूपी के दिग्गजों का आना, मतलब एमपी में यूपी मॉडल पर काम करने की प्लानिंग है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस कदम से सपा राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन में अपनी भूमिका मजबूत करना चाहती है. क्या यह इंडिया गठबंधन की राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है या अखिलेश की व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा? ये तो आने वाले दिन बताएंगे, लेकिन खजुराहो से शुरू हुई यह हलचल एमपी की राजनीति को गर्मा सकती है. सपा की यह तैयारी भाजपा और कांग्रेस दोनों को सतर्क कर रही है.