लाशों के चिथड़े बटोरकर करवाई शिनाख्त, सबूतों की डिजिटल लाइब्रेरी: दिल से सहेजकर रखते हैं गैरों की अस्थियां; श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार और ओंकारेश्वर में तर्पण-विसर्जन – Indore News

लाशों के चिथड़े बटोरकर करवाई शिनाख्त, सबूतों की डिजिटल लाइब्रेरी:  दिल से सहेजकर रखते हैं गैरों की अस्थियां; श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार और ओंकारेश्वर में तर्पण-विसर्जन – Indore News


इंदौर में ऐसे भी लोग हैं, जो उन लावारिस इंसानों के लिए जीते हैं, जिन्हें दुनिया पहचानने से कतराती है। किसी अज्ञात शव की पहचान से लेकर उसके सम्मानजनक अंतिम संस्कार तक यह लोग पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं। इतना ही नहीं, सालभर इनकी अस्थियां सहेजकर श्राद्ध

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इंदौर की महाकाल संस्था और सुल्तान-ए-इंदौर एकता सेवा समिति के सेवादारों का प्रयास रहता है कि लावारिस शवों की पहचान हो सके। फिर भी अगर उनकी पहचान नहीं होती तो इसके लिए एक डिजिटल लाइब्रेरी बनाई गई है। इसमें घटना और लावारिस शवों के सारे तकनीकी व दस्तावेजी सबूत सुरक्षित रखे जाते हैं।

इसके बाद कानूनी प्रक्रिया पूरी कर शव का पोस्टमॉर्टम करवाकर सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाता है। ऐसे अज्ञात शवों को मोक्ष दिलाने के लिए सेवाभाव जरूरी माना जाता है। इस बार भी 21 सितंबर को वे 200 से अधिक अज्ञात लोगों के लिए श्राद्ध पर तर्पण कर उनकी अस्थियां नर्मदा में विसर्जित करेंगे।

लावारिस शवों को सम्मान दिला रही इंदौर की दो संस्थाएं

संस्था की ओर से सालों से ऐसा सेवा काम किया जा रहा है। अगर इनके काम की शुरुआत सुनी, देखी या समझी जाए तो रूह कांप जाती है। ऐसे-ऐसे घटनाक्रम होते हैं, जिन्हें देखकर लोगों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं या घृणा उत्पन्न हो जाती है।

अधिकांश लोग तो सेवाभाव दिखाना तो दूर, बल्कि किनारा कर लेते हैं। कई लोग वीडियो रील्स के फेर में ऐसे घटनाक्रम कैद तो कर लेते हैं लेकिन मदद के लिए आगे नहीं आते। ऐसे में इन दोनों संस्थाओं के सेवादारों का असली काम शुरू होता है।

सालभर अस्थियां सहेजकर रखा जाता है।

डरावने घटनाक्रम में भी सेवाभाव का जज्बा

संस्थाओं के सेवादारों को पुलिस, अस्पताल या किसी अन्य माध्यम से सूचना मिलती है कि किसी रेलवे क्षेत्र में एक व्यक्ति का सिर धड़ से अलग हो गया है। जब वे वहां पहुंचते हैं तो दृश्य बेहद भयावह होता है। ऐसे मौके पर दोनों संस्थाओं के सेवादार पुलिस की मौजूदगी में दूर पड़े कटे सिर को धड़ के ऊपरी हिस्से में रखते हैं और उसकी पहचान के लिए वीडियो-फोटो लेते हैं।

फिर सिर और धड़ को उठाकर बड़ी चादर या झोले में रखकर वाहन से पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल ले जाते हैं। उसके बाद शव के कपड़े, जेब में रखे कागज या मोबाइल आदि के आधार पर पहचान कराने का प्रयास करते हैं। अगर सफलता नहीं मिलती तो थानों से गुमशुदा की उम्र के आधार पर शिनाख्त की कोशिश की जाती है। ऐसे कई खौफनाक घटनाक्रम जैसे हादसे, हत्या, आत्महत्या, बर्निंग केस या फांसी में भी ये सेवादार अपनी भूमिका निभाते हैं।

सेवादारों की मदद से बिछड़े लोग अपनों से मिले

सेवादारों की एक सेवा यह भी है कि अस्पतालों, रेलवे स्टेशनों पर मिले ऐसे लावारिस लोग, खासकर मंदबुद्धि या बुजुर्ग, जो भटककर कर्नाटक, महाराष्ट्र, प्रयागराज सहित अन्य राज्यों से पहुंचे थे। उनके फोटो और वीडियो कई राज्यों के सामाजिक कार्यकर्ताओं के वॉट्सऐप ग्रुपों पर भेजे गए। इससे काफी मदद मिली। संबंधित परिजन ने अपने भटके हुए परिवारजन को पहचाना और इंदौर आकर विधिवत पहचान की और उन्हें अपने साथ ले गए।

इसके अलावा ऐसे बेसहारा लोग जो सड़कों पर बीमार पड़े रहते हैं या मानसिक रोगी, जो धूप और बारिश में इधर-उधर भटकते रहते हैं, उनका सरकारी अस्पतालों में उचित इलाज भी करवाया गया। अभी तक ऐसे 800 से अधिक लोगों का इलाज कराकर उन्हें आश्रय दिलवाया गया है। कई बेसहारा और बिछड़े लोग सेवादारों की मदद से अपने परिवारों तक पहुंच पाए हैं।

अब तक 10 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार

दोनों संस्थाएं 10 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं। इनमें से 8 हजार शव वे हैं, जिनका अंतिम संस्कार पुलिस या अस्पताल से सूचना मिलने के बाद किया गया। 2 हजार से अधिक शव वे हैं। जिन्हें विभिन्न प्रकार के हादसों (डरावने) से रेस्क्यू कर पोस्टमार्टम के लिए अस्पताल लाया गया।

21 सितंबर को 200 से अधिक अज्ञात लोगों के लिए श्राद्ध पर तर्पण कर उनकी अस्थियां नर्मदा में विसर्जित करेंगे।

21 सितंबर को 200 से अधिक अज्ञात लोगों के लिए श्राद्ध पर तर्पण कर उनकी अस्थियां नर्मदा में विसर्जित करेंगे।

ये लाशें ही मेरी जिंदगी हैं

पंडित जय्यू जोशी झाबुआ जिले के छोटे से आदिवासी अंचल के रहने वाले हैं। जय्यू में सेवा का जज्बा बचपन से था। उनका जन्म चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाबरा में हुआ था। पिता पुलिस में आरक्षक थे, लेकिन कम उम्र में ही माता-पिता का देहांत हो गया। इसके बाद वे काम की तलाश में इंदौर आए और संघर्ष किया। किसी ने उनका साथ नहीं दिया। पिछले 9 सालों से वे जीवन को इस सेवा में समर्पित किए हुए हैं। इन 9 सालों में उन्होंने कभी छुट्टी नहीं मनाई। वे 24 घंटे इस सेवा में उपलब्ध रहते हैं।

मानसिक रोगियों और असहाय बीमार बुजुर्गों को अपने हाथों से नहलाते और भोजन कराते हैं। इस काम को वे ईश्वरीय सेवा मानते हैं। एक बार दुर्घटना में उनकी 4 पसलियां टूट गई थीं। उसी समय पुलिस से एक शव की सूचना मिली तो अपना दर्द भूल पहले उसका क्रियाकर्म किया और बाद में अपना इलाज करवाया। ऐसे कई मौके आए जब उन्होंने अपने जीवन से ज्यादा इन पीड़ितों की देह की चिंता की।

मां की कोख से पैदा होता है इंसान, मौत के बाद अंतिम संस्कार जरूरी

करीम और फिरोज पठान ने बताया कि 1978 में उनके पिताजी ने यह सेवा शुरू की थी ताकि इस दुनिया में कोई इंसान लावारिस न रहे। वे कहा करते थे कि हर शव, हर लाश को लावारिस नहीं रहना चाहिए। इंसान मां की कोख से पैदा होता है, तो उसकी मौत के बाद विधिवत अंतिम संस्कार जरूरी है। वह हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई या किसी भी जाति का हो यह मायने नहीं रखता। हमारा काम ऐसा है, जिसे लोग देखना तक पसंद नहीं करते। हम सड़क पर तड़पते बेबसों को जीवन देते हैं और लावारिस शवों को कंधा देकर सम्मान के साथ उनकी विदाई करते हैं।

कफन देना हो या सहारा, यही मेरी आखिरी मंजिल

सेवादार रिंकू ठाकुर का कहना है कि सोशल मीडिया पर दो चेहरे देखे, करीम भाई और जय्यू, जो लावारिस लाशों को कंधा दे रहे थे। यह दृश्य मेरे दिल को छू गया। मेरे मन ने एक ही आवाज जगाई कि सेवा ही सबसे बड़ी साधना है। आज मैं उनके साथ खड़ा हूं। कफन देना हो या सहारा देना, यह रास्ता अब मेरी आखिरी मंजिल है। जब किसी की आखिरी विदाई सम्मान के साथ होती है, तो लगता है कि इंसानियत कभी मर नहीं सकती।

हर शव में मुझे मेरा परिवार दिखता है

अजय नागदा पिछले चार सालों से इस टीम का हिस्सा हैं। वे छोटे से गांव से सपने संजोकर इंदौर आए तो जीवन तब बदल गया, जब उन्होंने सड़कों पर लावारिस पड़ी लाशों को देखा। उसी क्षण से उन्होंने मानवता की सेवा को अपना ध्येय बना लिया और निरंतर देह को मोक्ष दिलवाने में जुटे हुए हैं।

सुरेश मोरे ने बताया कि लॉकडाउन में मेरे भाई, दामाद, बहनोई और पत्नी की मौत हो गई। तब से मैं यह सेवा कर रहा हूं। मन को सुकून मिलता है। हर शव में मुझे मेरा परिवार दिखता है, अब यही मेरा जीवन है। सेवादार सीमा सिंह और सोनू सिंह विग भी इसी टीम का हिस्सा हैं।

अस्थियों को श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार और ओंकारेश्वर में तर्पण व विसर्जन भी करते हैं।

अस्थियों को श्राद्ध पक्ष में हरिद्वार और ओंकारेश्वर में तर्पण व विसर्जन भी करते हैं।

पूर्व आईजी बोले- मैं इनकी सेवा को सैल्यूट करता हूं

पूर्व आईजी जीजी पांडे का कहना है कि मैं इन सेवादारों की सेवा से सालों से वाकिफ हूं। यह जो सेवा काम करते हैं। वह बहुत चुनौतीपूर्ण है। इन सेवादारों ने अपना जीवन इसी नेक काम में झोंक दिया है। इनके काम से पुलिस की राह भी काफी आसान हुई है। असल में सम्मान तो ऐसे लोगों को किया जाना चाहिए, जो पूरे जज्बे के साथ इस काम से जुड़े हैं। मैं इनकी सेवा को सैल्यूट करता हूं।

निस्वार्थ पूरे जज्बे के साथ सेवा करती है टीम

इंदौर में पदस्थ रहे और वर्तमान कन्नौद टीआई तहजीब काजी ने बताया कि इस टीम में सभी जाति-धर्म के सेवादार हैं। इनके काम की जितनी सराहना की जाए, कम है। सिर्फ मैं ही नहीं, कई अधिकारी इनके काम से काफी प्रभावित हैं और हर संभव मदद करते हैं।



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