खंडवा जिले का माहौल इस बार दुर्गा उत्सव में कुछ अलग ही नजर आ रहा है. शहर के पंडालों में मां दुर्गा की ऐसी भव्य प्रतिमाएं सज रही हैं कि लोग देखते ही मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. इन प्रतिमाओं की खासियत यह है कि इन्हें पश्चिम बंगाल से आए कलाकार किना पाल ने अपनी अनूठी कला से तैयार किया है. और मजेदार बात यह है कि ये मूर्तियां पूरी तरह इको-फ्रेंडली हैं. गंगा नदी के किनारे की मिट्टी और प्राकृतिक रंगों से बनी ये प्रतिमाएं पूजा के बाद विसर्जन में भी पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचातीं.
क्या है किना की कहानी?
किना की जिंदगी की कहानी उनकी कला जितनी ही प्रेरणादायक है. पढ़ाई में उनका मन कभी नहीं लगा. पांचवीं कक्षा में फेल होने के बाद उन्होंने किताबें छोड़ दीं. आमतौर पर ऐसे वक्त पर बच्चे का भविष्य धुंधला नजर आता है, लेकिन किना ने इसे अपनी जिंदगी का नया मोड़ बना लिया. उन्होंने मिट्टी और रंगों से खेलना शुरू किया और यही खेल धीरे-धीरे उनका पैशन बन गया.
बचपन में जहां वह छोटे-छोटे खिलौने और साधारण मूर्तियां बनाते थे, वहीं समय के साथ उनके हाथों की निपुणता बढ़ती गई. पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा भव्यता के साथ मनाई जाती है और वहां के कलाकारों की बारीकी पूरी दुनिया में मशहूर है. किना ने इसी परंपरा को मेहनत से सीखा और इसे ही अपना जीवन बना लिया.
गंगा की मिट्टी से बना रहे मां दुर्गा की प्रतिमा
आज हालात यह हैं कि जो बच्चा पढ़ाई में फेल हो गया था, वही अब हजारों दिलों में अपनी कला से राज कर रहा है. उनकी मूर्तियों के चेहरे की भाव-भंगिमा, आंखों की चमक और सजावट इतनी जीवंत होती है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं.
इस बार खंडवा में वे खास तौर पर बड़ी दुर्गा प्रतिमाएं बना रहे हैं. गंगा की मिट्टी का चयन उन्होंने धार्मिक मान्यता और पर्यावरण दोनों कारणों से किया है. मान्यता है कि गंगा की मिट्टी से बनी मूर्तियों में देवी का आशीर्वाद विशेष रूप से मिलता है और यह मिट्टी मूर्तियों को प्राकृतिक मजबूती भी देती है.
किना पाल सिर्फ कला ही नहीं, बल्कि संदेश भी दे रहे हैं कि प्लास्टिक और केमिकल रंगों से दूरी बनाओ और पर्यावरण बचाओ. वे रासायनिक रंगों के बजाय प्राकृतिक और इको-फ्रेंडली रंगों का इस्तेमाल करते हैं, ताकि विसर्जन के बाद नदियों और तालाबों को प्रदूषण से बचाया जा सके.
लोगों की भीड़ उनके काम को देखने के लिए उमड़ रही है. बच्चे, बुजुर्ग, महिलाएं सब उनकी कला को देखकर चकित रह जाते हैं. यह जीता-जागता सबूत है कि इंसान डिग्री से नहीं, बल्कि हुनर और मेहनत से मुकाम हासिल करता है. किना का मानना है कि ईश्वर ने हर इंसान को एक खास हुनर दिया है. पढ़ाई जरूरी है, लेकिन अगर उसमें मन न लगे तो हिम्मत हारने के बजाय अपने हुनर को पहचानना चाहिए.
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