मप्र की 25% शहर सरकारें कंगाल: 7-7 माह से वेतन नहीं; अब जनता पर टैक्स बढ़ाने की तैयारी – Bhopal News

मप्र की 25% शहर सरकारें कंगाल:  7-7 माह से वेतन नहीं; अब जनता पर टैक्स बढ़ाने की तैयारी – Bhopal News



माली हालत सुधारने जनता पर 20% तक टैक्स बढ़ाने की तैयारी

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इसके अलावा 10 से 20 फीसदी स्टाफ को हटाने की भी तैयारी

लंबे समय से खराब माली हालत से जूझ रहे नगरीय निकाय जल्द संपत्तिकर और जल कर जैसे टैक्स बढ़ा सकते हैं। इनमें पदस्थ 10-20 फीसदी स्टाफ की छंटनी भी हो सकती है। प्रदेश में 413 नगरीय निकाय हैं। 25% निकायों में नियमित वेतन भी नहीं मिल पा रहा।

इसके मद्देनजर नगरीय विकास एवं आवास विभाग ने निकायों को निर्देश दिए हैं कि अतिरिक्त कर्मचारियों को हटाकर खर्च कम करें और टैक्स बढ़ाएं। जिन निकायों में 3 साल से अधिक समय से प्रॉपर्टी टैक्स नहीं बढ़ा है, वहां एक साथ 20 फीसदी टैक्स बढ़ाने के लिए कहा गया है।

दरअसल, नगरीय निकायों की आय का प्रमुख स्रोत टैक्स और चुंगी क्षतिपूर्ति है। वर्तमान में इन्हें हर माह लगभग 300 करोड़ रुपये की चुंगी क्षतिपूर्ति मिल रही है, जबकि आवश्यकताओं के अनुसार यह राशि 475 करोड़ होनी चाहिए। 1986 में निकायों से चुंगी वसूली समाप्त कर दी गई थी और इसके स्थान पर हर साल 10% क्षतिपूर्ति बढ़ाने का प्रावधान किया गया।

लेकिन 1997 में इसे स्थिर कर दिया गया। 2006 में जब निकायों की वित्तीय स्थिति बेहद खराब हो गई, तब इसे कुछ बढ़ाया गया। अब फिर से निकाय आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं।

आय बढ़ाने का फॉर्मूला- जहां 3 साल से संपत्तिकर नहीं बढ़ा, वहां इसे बढ़ाया जाए

इसलिए भी बढ़ा निकायों का खर्च 2018 तक प्रदेश में 378 नगरीय निकाय थे जो अब बढ़कर 413 हो गए हैं। 191 ग्राम और नगर पंचायतों को भी नगर निगमों में शामिल कर दिया गया है। चुंगी क्षतिपूर्ति राशि में भी बिजली बिल की राशि, 20% पेंशन अंशदान आदि कट जाता है। जुलाई 2024 से तहबाजारी वसूलना भी बंद है। (मप्र नगर निगम-नगरपलिका संघ के प्रदेशाध्यक्ष सुरेंद्र सिंह सोलंकी के अनुसार)

यहां 2-7 महीने तक देरी से वेतन : चंदेरी, धामनोद, धरमपुरी, ब्यावरा, राजगढ़, बैरसिया, लटेरी, कुरवाई, धार, पचोर आदि कुल 25% निकाय।

सिर्फ दैवेभो को हटा सकते हैं पर काम यही संभाल रहे

प्रदेश में 413 नगरीय निकाय: प्रदेश के 413 नगरीय निकायों में वर्तमान में लगभग 1 लाख दैनिक वेतन भोगी और विनियमित (स्थायीकर्मी) के अलावा 50-55 हजार नियमित कर्मचारी हैं। 2003 के बाद से लगातार दैनिक वेतनभोगियों को विनियमित किया गया है। विभाग ने 2016 के पहले के विनियमित कर्मियों को नियमित करने की बात भी कही है।

बड़ी संख्या में दैवेभो: निकायों में काफी दैवेभो हैं। इनमें सफाईकर्मी, सड़क, बिल्डिंग मेंटेंनेस व जल कर्मी शामिल हैं। विनियमित कर्मियों को नहीं हटा सकते। दैवेभो को हटाना संभव है, लेकिन काम का अधिकतर बोझ इन पर है। चंदेरी में 153 दैवेभो को हटाया गया है। नियम है कि जिन निकायों में स्थापना व्यय खुद के स्रोतों से 65% से अधिक है, वहां अतिरिक्त कर्मचारी हटाएं।

भास्कर एक्सपर्ट – राकेश सिंह, रिटायर्ड आईएएस, अर्बन प्लानिंग एक्सपर्ट

जमीनों के भाव में आ रही तेजी का लाभ उठाएं निकाय नगरीय निकायों में या तो करों का नियमित संशोधन नहीं होता या उनकी वसूली नियमित नहीं की जाती। ऐसे में वित्तीय हालत लगातार कमजोर हो जाती है। चुंगी क्षतिपूर्ति की राशि में अब अधिक वृद्धि संभव नहीं है। निकायों के लिए वैल्यू कैप्चर फाइनेंस सबसे बड़ा स्रोत बन सकता है।

यानी सड़क किनारे जमीनों के भाव तेजी से बढ़े हैं पर इनका लाभ निकायों को नहीं मिल रहा हैं। इनके बारे में निकायों को जल्द नीति बनानी होगी। व्यवस्थित शहरी विकास के लिए उसी तरह सहायता देनी होगी, जैसे औद्योगिक विकास के लिए देते हैं। शहरों के तेजी से विकास के लिए वित्त आयोग में सहायता बढ़नी चाहिए।

ऐसे निर्णय : कर में बढ़ोतरी के लिए अभिमत मांगा था दो साल पहले बुरहानपुर नगर निगम ने संपत्ति कर में ज्यादा बढ़ोतरी के लिए विभाग से अभिमत मांगा था। यहां 15 साल से संपत्ति कर नहीं बढ़ा है। इसके बाद संचालनालय में सभी निकायों की आय पर मंथन हुआ। इसके बाद संशोधन हुआ कि अधिक समय से कर नहीं बढ़ा तो एक साथ 20% संपत्ति कर और 25% जल कर बढ़ा सकते हैं।

स्थापना व्यय तय सीमा से ज्यादा : सागर, मुरैना, खंडवा, बुरहानपुर, छिंदवाड़ा, सतना, ग्वालियर व जबलपुर। { यहां तय सीमा में : भोपाल, इंदौर, रतलाम और सिंगरौली।

नगरीय निकाय खुद आय जुटाएं और अपना खर्च उठाएं नगरीय निकाय स्वशासी शासन पर चलते हैं। यानी खुद आय जुटाएं और अपना खर्च उठाएं। इसके फायदे और नुकसान दोनों हैं। ये सही है कि निकायों में वेतन लेट हो रहा है। लेकिन, बीते सालों में कई जगह बजट मिला तो गैरजरूरी खरीदी कर ली गई। जरूरत से दो-ढाई गुना कर्मचारी रख लिए गए। निकाय डीजल चोरी रोकें, बिजली की खपत कम करें, टैक्स बढ़ाएं, नई प्रॉपर्टी ढूंढें, तभी शासन कुछ मदद कर पाएगा। जहां अतिरिक्त स्टाफ है, उसकी छंटनी के लिए भी निर्देश दिए हैं। -संजय दुबे, एसीएस नगरीय विकास एवं आवास



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