शहडोल की एक अदालत ने बागेश्वर धाम के पीठाधीश पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री को बड़ी राहत दी है। शनिवार को न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी सीताशरण यादव की अदालत ने उनके खिलाफ दायर धार्मिक भावनाएं भड़काने से संबंधित एक परिवाद को खारिज कर दिया है।
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अदालत ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि शास्त्री के कथन धार्मिक और आध्यात्मिक प्रवचन की मर्यादा में थे, जिनसे कोई अपराध नहीं बनता।
इस बयान को लेकर दायर किया गया था परिवाद
यह परिवाद अधिवक्ता संदीप तिवारी ने दायर किया था। परिवादी ने आरोप लगाया था कि प्रयागराज महाकुंभ के दौरान धीरेंद्र शास्त्री ने कहा था, “जो महाकुंभ में नहीं आएगा, वह पछताएगा और देशद्रोही कहलाएगा।” परिवादी ने इस कथन को असंवैधानिक और भड़काऊ बताते हुए भारतीय न्याय संहिता 2023 और आईटी एक्ट की विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई की मांग की थी।
वकील ने कहा- बयान को तोड़-मरोड़कर पेश किया
मामले की सुनवाई के दौरान शास्त्री की ओर से अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने पैरवी की। उन्होंने तर्क दिया कि यह बयान सिर्फ धार्मिक और आध्यात्मिक संदर्भ में दिया गया था, जिसका उद्देश्य किसी वर्ग विशेष या व्यक्ति को अपमानित या भड़काने का नहीं था। उन्होंने यह भी बताया कि शास्त्री के बयानों को सोशल मीडिया पर तोड़-मरोड़कर पेश किया गया था।
मामले की सुनवाई के दौरान शास्त्री की ओर से अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने पैरवी की।
सभी पक्षों की दलीलें सुनने और उपलब्ध साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद न्यायालय ने पाया कि परिवाद में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया गया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा कि धार्मिक प्रवचन में दिए गए बयानों को भड़काऊ ठहराना कानूनी दृष्टि से उचित नहीं है। इसी आधार पर धीरेंद्र शास्त्री के विरुद्ध संज्ञान लेने से इनकार करते हुए परिवाद को निरस्त कर दिया गया।
फैसले के बाद अधिवक्ता समीर अग्रवाल ने कहा कि न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि पंडित धीरेंद्र शास्त्री के दिए गए बयान न तो किसी व्यक्ति, न किसी वर्ग, और न ही किसी धर्म की भावना को ठेस पहुंचाते हैं। उन्होंने कहा कि यह निर्णय दर्शाता है कि अफवाहों और गलत व्याख्याओं के आधार पर किसी की छवि को धूमिल नहीं किया जा सकता।
