Ground Report: मध्यप्रदेश के कई जिलों में रबी सीजन की शुरुआत से पहले ही किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें गहरी होती जा रही हैं. खेत तैयार हैं, मौसम अनुकूल है, लेकिन सबसे जरूरी चीज- खाद की किल्लत ने किसानों की कमर तोड़ दी है. विपणन केंद्रों से लेकर सहकारी समितियों तक किसानों की भीड़ है, पर वहां सिर्फ ताले लटके हैं या सीमित मात्रा में खाद दी जा रही है.
जिले के कोहड़र गांव से आए किसान जितेंद्र दशोरे बताते हैं “तीन दिन से विपणन केंद्र के चक्कर काट रहा हूं. हर बार अधिकारी कहते हैं कि ट्रक आने वाला है, लेकिन अब तक खाद नहीं आई. डीएपी की जगह वैकल्पिक खाद दी जा रही है जो फसल के लिए उतनी असरदार नहीं है. किसान करे तो क्या करे?”
उधर ग्राम मलगांव के किसान राकेश पटेल भी नाराजगी जताते हुए कहते हैं “जरूरत अभी है, बाद में खाद आएगी तो उसका कोई मतलब नहीं रहेगा. सरकार अगर समय पर खाद नहीं दे सकती, तो बाकी जरूरतें क्या पूरी करेगी? पैसे लेकर भी खाद नहीं मिल रही, कई किसान खाली हाथ लौट रहे हैं.”
समितियों पर हंगामा, सीमित वितरण से बढ़ी परेशानी
विपणन केंद्रों और सहकारी समितियों पर किसानों की लंबी लाइनें लगी हैं. हर किसान उम्मीद लेकर आता है कि आज शायद खाद मिल जाए, लेकिन एक व्यक्ति को एक एकड़ के हिसाब से सिर्फ एक बोरी यूरिया दी जा रही है, जबकि जरूरत कम से कम दो बोरी की होती है. अधिकारी कहते हैं कि स्टॉक सीमित है, इसलिए नियंत्रण जरूरी है.
इस सीमित वितरण ने किसानों के बीच आक्रोश फैला दिया है. कुछ जगहों पर किसानों ने नाराज होकर समिति के बाहर प्रदर्शन भी किया. उनका कहना है कि अगर यही हाल रहा, तो रबी की बुवाई समय पर नहीं हो पाएगी और उत्पादन पर भारी असर पड़ेगा.
खरीफ सीजन की तरह दोहराई जा रही है कहानी
यह पहली बार नहीं है जब खाद की किल्लत सामने आई हो. खरीफ सीजन में भी यही समस्या बनी रही थी. कई बार किसानों ने मांग की थी कि सरकार समय से पहले पर्याप्त स्टॉक सुनिश्चित करे, लेकिन फिर वही हालात देखने को मिल रहे हैं.
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, रबी फसलों, खासकर गेहूं, चना और मसूर के लिए डीएपी और यूरिया की जरूरत सबसे ज्यादा होती है. अगर ये खाद समय पर न मिले तो बीज अंकुरण और पौध की शुरुआती बढ़त पर बुरा असर पड़ता है. इसका सीधा असर उत्पादन और किसान की आय पर पड़ता है.
प्रशासनिक दावा और हकीकत में फर्क
प्रशासन का दावा है कि खाद की आपूर्ति जल्द सामान्य हो जाएगी. जिला विपणन अधिकारी ने बताया कि “राज्य स्तर से ट्रकों की रवानगी शुरू हो चुकी है, जल्द ही सभी समितियों को पर्याप्त खाद मिल जाएगी.” लेकिन ज़मीनी हकीकत कुछ और ही कहती है. किसान बताते हैं कि पिछले कई दिनों से यही भरोसा दिया जा रहा है, पर ट्रक अब तक नहीं पहुंचे. कई किसानों ने वैकल्पिक रूप से निजी दुकानों से महंगे दामों पर खाद खरीदना शुरू कर दिया है. डीएपी जहां सरकारी दर पर करीब 1350 रुपये में मिलती है, वहीं निजी विक्रेता इसे 1700–1800 रुपये तक में बेच रहे हैं.
“खेती रुक गई है, मौसम हाथ से निकल रहा है”
गांव-गांव में यही चर्चा है कि अगर अगले कुछ दिनों में खाद नहीं पहुंची, तो बुवाई का समय निकल जाएगा. किसान अब मौसम को लेकर भी चिंतित हैं, क्योंकि देर से बुवाई करने पर फसल की उपज कम होती है और लागत बढ़ जाती है. दिवाल के किसान राजू दरबार का कहना है कि “खेती हमारा जीवन है. अगर खाद ही नहीं मिलेगी तो फसल कैसे होगी? हमने बीज खरीद लिए, खेत तैयार हैं, पर अब सब रुका हुआ है.”
रबी सीजन की शुरुआत के साथ ही खाद संकट ने फिर से यह सवाल खड़ा कर दिया है कि किसानों की बुनियादी जरूरतों पर ध्यान आखिर कब दिया जाएगा. सरकारें हर साल दावा करती हैं कि किसानों के लिए पर्याप्त खाद उपलब्ध है, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही कहानी कहती है. अगर जल्द आपूर्ति सामान्य नहीं हुई, तो इसका असर न सिर्फ किसानों की आय पर पड़ेगा बल्कि जिले की
कृषि अर्थव्यवस्था पर भी गहरा असर डालेगा.
इस वक्त जरूरत है कि सरकार और प्रशासन त्वरित कार्रवाई करे ताकि किसान बिना चिंता के अपनी बुवाई पूरी कर सकें — क्योंकि किसान की मेहनत ही देश की रोटी का आधार है.