आज ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ है। इस साल की थीम है ‘हर मिनट मायने रखता है’ यानी ब्रेन स्ट्रोक के लक्षणों को पहचाने और तुरंत (Golden Hours) में इलाज कराएं ताकि जल्दी रिकवरी हो सके। इससे ब्रेन को नुकसान कम होने के साथ जीवित रहने की संभावनाएं बढ़ जाती है। वैसे
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आज हम ऐसे न्यूरो सर्जन की कहानी बता रहे हैं जो खुद ब्रेन हेमरेज का शिकार हो चुके हैं। वह भी ऑपरेशन थियेटर में सर्जरी करते समय। इंदौर के सीनियर न्यूरो सर्जन डॉ. दीपक कुलकर्णी (61) 10 हजार से ज्यादा ब्रेन सर्जरी कर चुके हैं। वे 2001 में ‘गिनीज बुक ऑफ द वर्ल्ड’ और ‘लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्डस’ में 570 ग्राम के ट्यूमर की सफल सर्जरी के मामले में अपना नाम दर्ज कर चुके हैं।
इसके अलावा कई अवार्डस हासिल किए हैं। वे ब्रेन हेमरेज, ब्रेन ट्यूमर, ब्रेन की हडि्डयां सहित ब्रेन से जुड़ी कई प्रकार की सर्जरी कर चुके हैं। विडम्बना ऐसी कि पिछले साल 18 अगस्त को वे एक मरीज की सर्जरी कर रहे थे तभी उन्हें खुद ब्रेन हेमरेज हो गया। इसके पूर्व वे हमेशा पूरी तरह स्वस्थ रहे और न ही कभी ब्लड प्रेशर, न डायबिटीज और न ही किसी भी प्रकार की तकलीफ से गुजरे। दरअसल, हजारों मरीजों की ब्रेन सर्जरी और अनुभव और खुद डॉक्टर होने के नाते वे अपने स्वास्थ्य के प्रति शुरू से काफी सजग है और संतुलिन भोजन के साथ नियमित व्यायाम करते हैं।
डॉ. कुलकर्णी को न्यूरो सर्जरी के लिए कई सम्मान मिल चुके हैं।
डॉ. कुलकर्णी से जानिए जिंदगी और मौत का संघर्ष मैं उस दौरान एक मरीज की सर्जरी कर रहा था। सर्जरी शुरू किए डेढ़ घंटा हुआ था और काफी जटिल थी। तभी मुझे सिरदर्द होना शुरू हुआ। मैंने महसूस किया कि यह अजीब प्रकार का सिरदर्द है। दरअसल, मेरा अनुभव और प्रेक्टिस के दौरान कई बार मरीजों की ऐसी हिस्ट्री सामने आती रही है। इस पर मुझे पूरा यकीन हो गया कि यह सिरदर्द साधारण नहीं बल्कि ब्रेन हेमरेज के लक्षण है।
दूसरी खास बात यह कि सर्जरी मैं खुद लीड कर रहा था। ऐसे में सर्जरी अधूरी नहीं रख सकता था क्योंकि मरीज कोमा में था और उसे बचाना बहुत जरूरी था। जूनियर डॉक्टरों को अधूरी सर्जरी की जिम्मेदारी देना भी ठीक नहीं था। इस पर मैंने पूरा ध्यान सर्जरी पर केंद्रित रखा और बाकी के डेढ़ घंटे में सर्जरी पूरी की। इस तरह तीन घंटे में यह सर्जरी पूरी की जो पूरी तरह सफल रही। ब्रेन की नस में खून का गुब्बारा फट गया था डॉ. कुलकर्णी बताते हैं- इधर, मेरा सिरदर्द और तेज हो गया। मैंने तुरंत स्थिति भांपी और संबंधित सारी इन्वेस्टिगेशन करवाए। इसके साथ ही दवाइयां शुरू हुई। कुछ समय बाद रिपोर्ट आई तो पता चला कि मेरे ब्रेन की एक नस में एक बड़ा खून का गुब्बारा है जो फट गया है। इसे मेडिकल में Rapatured anurysm bleed कहते हैं। यह स्थिति काफी खतरनाक और जानलेवा होती है। इसमें मरीज कोमा में जा सकता है, उसे स्ट्रोक आने से शरीर लकवाग्रस्त हो जाता है या ब्लीडिंग नहीं थमने से ब्रेनडेड या मौत हो जाती है।

डॉ. कुलकर्णी लगातार मरीज देख रहे हैं।
48 घंटे तक अनकॉन्शियस रहे फिर 24 घंटे मेडिसिन लेने के बाद फिर से सारे इंवेस्टिगेशन हुए और इंदौर के एक प्राइवेट हॉस्पिटल में एडमिट किया गया। इस दौरान मुंबई के न्यूरो सर्जन डॉ. अतुल गोयल और इंदौर की डॉक्टरों की टीम ने ब्रेन की सर्जरी की जो तीन घंटे चली। इस दौरान मेरे ब्रेन की क्लीपिंग की गई। यह सर्जरी तीन घंटे की रही। मैं 48 घंटे तक अनकॉन्शियस रहा।
इसके साथ ही एक हफ्ते तक वेंटिलेटर पर रहा। फिर धीरे-धीरे होश आया तो फिर पता चला कि सर्जरी सफल रही लेकिन मुझे तीन-चार माह आराम करना होगा। मैं खुद भी सर्जन होने के नाते इससे वाकिफ था। मैं डेढ़ माह तक एडमिट रहा और फिर डिस्चार्ज किया गया।
अब पहले से ज्यादा जटिल सर्जरी करते हैं इसके बाद सर्जरी के बाद एक हाथ और पैर में कमजोरी थी जो फिजियोथैरेपी से ठीक हो गई। इसके साथ ही धीरे-धीरे रिकवरी भी अच्छी हुई। फिर तीन माह में खुद को इतना मजबूत किया कि फिर से ब्रेन सर्जरी शुरू कर दी।
दरअसल मेरी सर्जरी के पूर्व कई मरीज ऐसे थे जिनकी सर्जरी होना थी और उनकी तारीखें भी बुक हो चुकी थी। मैं तीन माह बाद मैं इतना तैयार हो गया था कि सर्जरी कर सकता था। अभी भी कोई तकलीफ नहीं है और नियमित दवाइयां चल रही हैं। पता नहीं अब तो पहले से ज्यादा जटिल सर्जरी कर रहा हूं। मेरी साथी डॉ. लाहोटी और अन्य डॉक्टर कहते हैं आप पहले से ज्यादा स्मार्ट हो गए हैं। फिर से मरीजों की सर्जरी कर दे रहे नई जिंदगी डॉ. कुलकर्णी इस अच्छी रिकवरी का कारण किस्मत और अपने अच्छे कर्म को मानते हैं। उनका कहना है कि मैंने तो खुद ब्रेन हेमरेज के लक्षण भांप लिए थे और डॉक्टरों ने भी तकलीफ को तुरंत डायग्नोस कर लिया। यह स्थिति अगर ‘नो रिटर्न’ के टैग में आ जाती तो इस खतरनाक स्थिति से मरीज फिर वापस नहीं आता यानी डेड या ब्रेन डेड हो जाता है।
डॉक्टरों ने तुरंत डायग्नोस कर सर्जरी कर ट्रीटमेंट शुरू कर दिया। आज मौत के मुंह से बाहर आने के बाद डॉ. कुलकर्णी फिर से मरीजों की सर्जरी कर उन्हें नई जिंदगी दे रहे हैं। उनकी खुद की सर्जरी होकर एक साल से ज्यादा हो गया है। वे हर माह 15 से 20 सर्जरी करते हैं। अब पूरी तरह से फिट हूं आखिर ब्रेन की नस में गुब्बारा कैसे फट गया, यह स्थिति क्यों हुई, इस पर उनका कहना है कि यह काम का तनाव और दुर्भाग्य था लेकिन अब पूरी तरह से फिट हूं। उनका कहना है कि मैंने महसूस किया कि ऐसे नाजुक मौके पर परिवार का बहुत बड़ा सपोर्ट रहता है। मेरी खुशकिस्मती है कि मेरी पत्नी ज्योति, दोनों बेटे महक और मेहर सहित पूरा परिवार पूरे समय मेरे साथ रहा। मुझे नई जिंदगी देने में उनकी अहम भूमिका है। देखा जाए तो उनसे ही मुजे काफी हिम्मत आई। ‘वर्ल्ड स्ट्रोक डे’ पर दिया संदेश

वर्ल्ड स्ट्रोक डे के पर उन्होंने कहा कि बहुत सी बातें प्रिवेंटेबल होती है। अगर आपका खानपान संतुलित है जैसे तेल, मिर्च, नमक, घी, मीठा बहुत कम है तो ब्रेन स्ट्रोक की आशंका बहुत कम होती हैं। ऐसे ही नियमित व्यायाम, वॉकिंग, योग भी करना चाहिए। अभी स्ट्रोक केस बढ़ने का खास कारण ही खराब लाइफ स्टाइल है।
अकसर मरीज को शुरुआत स्टेज पर ही काफी प्रिवेंशन रखने के बारे में कहा जाता है लेकिन वे नहीं रखते। उनका सोच रहता है कि दवाइयों से ठीक हो जाएंगे। इसके अलावा आनुवांशिक कारण भी होता है। इसके अलावा उम्र का प्रभाव भी होता है। लोगों को खासकर युवाओं को चाहिए कि वे अपनी लाइफ स्टाइल खासकर संतुलित आहार लें, पर्याप्त नींद लें और नियमित व्यायाम करें। इसके साथ ही स्ट्रोक के लक्षणों को पहचाने। इससे Gold Hours में मरीज को तुरंत इलाज मिलने से उसकी जान और जोखिम से बचाया जा सकता है।

पूर्व मुख्यमंत्री के आग्रह पर कर चुके हैं सर्जरी डॉ. कुलकर्णी प्रदेश के प्रमुख न्यूरो सर्जन्स में से एक है। 2019 में मप्र के तत्कालीन आईपीएस निरंजन बी वायंगणकर एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उनके ब्रेन में कांच के कई टुकड़े घुस गए थे और ब्रेन में गंभीर इंज्युरी थी। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के आग्रह पर डॉ. कुलकर्णी ने उनकी सर्जरी की थी। उन्हें चार्टर प्लेन से अस्पताल लाया गया था। खुद शिवराज सिंह चौहान भी अस्पताल आए थे। इसके अलावा मप्र सरकार ने ही उन्हें दो बार सरकारी एमवाय अस्पताल में भी सर्जरी के लिए आमंत्रित किया था। यहां भी दो स्पेशल सर्जरी वे कर चुके हैं।
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