बालाघाट. सुनीता मन ही मन तय कर चुकी थी कि उसे अपने कंधे से नक्सलवाद का बोझ उतारकर फेंकना है. ऐसे में उसने 31 अक्टूबर की रात तय कर लिया था कि उसे उस दुनिया को छोड़ जाना है, जहां हथियारों के बल सत्ता का ख्वाब दिखाया जाता है. बाकि साथी सो रहे थे. सुनीता ने हिम्मत दिखाई और संगठन से अलग हो गई. उसने तय कर लिया था कि पुलिस को हथियार सौंप कर बेहतर जीवन जीना है, जहां आई-बाबा हों, काका-काकी हों और वो तमाम लोग हों, जो उसकी फिक्र करें. अब वह तीन साल बाद अपने माता-पिता से मिल रही है. यह पल बेहद भावुक कर देने वाला था, जब तीन साल से आंखों से ओझल बिटिया अपने आई-बाबा से मिली.
नक्सलवाद की राह छोड़ चुकी सुनीता 1 नवंबर की सुबह ही संगठन से अलग हो गई थी. उसे इतनी समझ तो थी कि हथियार हाथ में होगा, तो उसी के लिए खतरा पैदा होगा. ऐसे में उसने अपनी इंसास राइफल, मैगजीन और माओवादी किट जंगल के एक ढेर में छिपा दी. इसके बाद वह जंगल में अकेले कई किलोमीटर दूर पैदल चलने लगी. सर्चिंग में जुटी जवानों की टीम को भी नहीं दिखी और आखिरकार शाम तक लांजी थाना क्षेत्र के चौरिया कैंप पहुंची, जहां उसने हॉक फोर्स के सहायक सेनानी रूपेंद्र धुर्वे के सामने सरेंडर किया.
जब वह कैंप पहुंची, तब उसके हाथ में एक कागज था, उस पर अपना नाम सुनीता और जिले का नाम बीजापुर लिखा था. उससे शुरुआती पूछताछ की, तब उसने अपने गांव और माता-पिता के बारे में बताया. फिर बीजापुर पुलिस से संपर्क किया गया. वहां के थाना प्रभारी ने गांव के सरपंच से बात कराई. वहां की पुलिस ने जब पहली बार सुनीता की बात उसके माता-पिता से कराई, तो वह रोने लगी.
सरेंडर के बाद मिले माता-पिता
सुनीता ने 1 अक्टूबर की शाम को सरेंडर किया. 700 किलोमीटर दूर बीजापुर से सुनीता के पिता बिसरू ओयाम, मां कुमली और चाची बुधरी उससे मिलने पहुंचीं. उनके साथ गांव के सरपंच चुन्नूराम भी थे. यह तीन साल बाद पहला मौका था, जब परिवार ने अपनी बिटिया को देखा था. ऐसा पल भावुक कर देने वाला था. अपनी बेटी से मिलने की उम्मीद खो चुके माता-पिता अपनी बच्ची को देख भावुक हो गए. तीन साल में उनके माता-पिता अपनी बेटी की चिंता में लगे रहते थे कि वह कैसी होगी. कहीं किसी नक्सली की तरह उसकी भी खबर न आ जाए. हर दिन आंखों में आंसू थे लेकिन 3 नवंबर की शाम को जब उन्होंने अपनी बेटी को देखा, तो इस बार सबकी आंखों में आंसू तो थे लेकिन खुशी के.
सुनीता के माता-पिता ने इच्छा जताई है कि वह अब अपने गांव गोमवेटा में ही रहे. नक्सली आत्मसमर्पण, पुनर्वास सह राहत नीति 2023 के तहत सरकार से जो भी सुविधा मिले, उसे बीजापुर में ही मिले. सुनीता भी माता-पिता के साथ घर जाना चाहती है. उन्होंने उनकी बेटी को सुरक्षित रखने के लिए बालाघाट पुलिस का आभार व्यक्त किया. पुलिस उसे बेहतर माहौल देने का प्रयास कर रही है ताकि वह समाज की मुख्यधारा से जुड़कर एक सशक्त महिला के रूप में अपना जीवन जी सके. पुलिस अब उसका आधार कार्ड बनवाएगी. जिसके बाद कागजी प्रक्रिया पूरी की जाएगी.
सुनीता ओयाम मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र की मोस्ट वांटेड नक्सली थी और उसपर 14 लाख रुपये का इनाम था. सुनीता का जन्म छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले के भैरमगढ़ तहसील के अंतर्गत आने वाले गोमवेटा गांव में हुआ था. पिता बिसरू ओयाम पहले नक्सल संगठन के संगम सदस्य थे. सुनीता महज 20 साल की थी, जब वह नक्सल संगठन से जुड़ी. नक्सलियों ने उसके परिवार को डरा-धमकाकर संगठन जॉइन करवाया था. साल 2022 में नक्सल संगठनों से जुड़ने के बाद 6 महीने तक हथियार चलाने और नक्सल विचारधारा की ट्रेनिंग ली. इसके बाद वह सक्रिय नक्सली बन गई. उसे एमएमसी जोन यानी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और छत्तीसगढ़ प्रभारी और सेंट्रल कमेटी के मेंबर रामदेर का गार्ड बनाया गया था.