खंडवा. सर्दियों का मौसम किसानों के लिए कई नई संभावनाएं लेकर आता है. इस मौसम में ऐसी कई फसलें होती हैं, जो कम लागत में अधिक लाभ देती हैं. इन्हीं में से एक है मसूर की खेती. मसूर एक प्रमुख दलहन फसल है, जिसकी खेती ठंड के मौसम में की जाती है. इसकी खासियत यह है कि इसे बहुत अधिक पानी की जरूरत नहीं होती और यह सूखे क्षेत्रों में भी अच्छी उपज देती है. किसान यदि सही समय पर इसकी बुआई करें, तो मात्र 90 से 100 दिनों में तैयार होकर यह फसल किसानों को लाखों का मुनाफा दे सकती है.
कब करें मसूर की बुआई?
कृषक जयदीप कुशवाह बताते हैं कि मसूर की बुआई ठंड की शुरुआत में यानी नवंबर के पहले या दूसरे सप्ताह में करना सबसे बेहतर रहता है. यदि बुआई में देरी की जाए, तो पौधे कमजोर रह जाते हैं और फलियां कम लगती हैं. ठंडी के शुरुआती दिनों में बोई गई मसूर की फसल मजबूत होती है और समय पर पककर तैयार हो जाती है.
बीज की मात्रा और बुवाई की विधि?
मसूर की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 30 से 40 किलोग्राम बीज पर्याप्त रहते हैं. बीजों को बोने से पहले फफूंदनाशी दवा कार्बेन्डाजिम से उपचारित करना चाहिए, ताकि फसल रोगमुक्त रहे. बीजों को 1 से 2 इंच गहराई में बोना चाहिए. पंक्तियों के बीच 18 से 24 इंच की दूरी और पौधों के बीच लगभग 1 इंच का फासला रखना जरूरी है. इससे पौधों को बढ़ने और हवा आने-जाने के लिए पर्याप्त जगह मिलती है.
सिंचाई और नमी की जरूरत
मसूर की खेती का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसे ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती. यदि बुआई के बाद एक बार हल्की वर्षा हो जाए, तो फसल लगभग बिना सिंचाई के भी तैयार हो सकती है. हालांकि, अगर सिंचाई की व्यवस्था है तो पहली सिंचाई बुवाई के 40-45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई फलियां बनने के समय करनी चाहिए. इससे पैदावार में 20-25 प्रतिशत तक वृद्धि होती है.
मिट्टी और जलवायु
मसूर की खेती के लिए दोमट या बलुई दोमट मिट्टी सबसे उत्तम मानी जाती है. इस फसल को हल्की ठंड और शुष्क वातावरण पसंद होता है. खेत में जलभराव नहीं होना चाहिए, क्योंकि ज्यादा नमी से पौधों की जड़ें सड़ जाती हैं. इसलिए खेत को हल्का ऊँचा बनाना फायदेमंद रहता है.
खाद और उर्वरक का प्रयोग
फसल की बेहतर उपज के लिए खेत की तैयारी के समय डीएपी (फॉस्फोरस) और म्यूरेट ऑफ पोटाश (पोटाशियम) की उचित मात्रा डालनी चाहिए. जैविक खाद या गोबर की खाद का उपयोग मिट्टी की उर्वरता बढ़ाता है. मसूर की जड़ें वायुमंडलीय नाइट्रोजन को भी स्थिर करती हैं, जिससे अगली फसल को भी लाभ मिलता है.
रोग और कीट प्रबंधन
मसूर की फसल पर फली छेदक कीट और जड़ सड़न रोग का खतरा होता है. फली छेदक से बचाव के लिए फसल में नीम का अर्क छिड़कना या ट्राइकोग्रामा जैसे जैविक उपाय करना प्रभावी रहता है. इसके अलावा, रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखने पर कार्बेन्डाजिम का छिड़काव करें.
फसल कटाई और पैदावार
मसूर की फसल 90 से 100 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है. जब फलियां पूरी तरह सूख जाएं और उनका रंग हल्का भूरा पड़ने लगे, तब फसल की कटाई करनी चाहिए. कटाई के बाद फसल को धूप में सुखाकर दानों को निकाल लें. औसतन एक हेक्टेयर में 10 से 15 क्विंटल तक उपज प्राप्त की जा सकती है.
मुनाफे की गणना
मसूर की खेती में कम लागत और ज्यादा दाम मिलने के कारण यह किसानों के लिए लाभकारी सौदा बन जाती है. अगर एक किसान एक हेक्टेयर में मसूर की खेती करता है, तो लगभग 20 से 25 हजार रुपए लागत आती है, जबकि उपज से 60 से 70 हजार रुपए तक की आमदनी होती है. यानी हर सीजन में किसान को दोगुना तक मुनाफा मिल सकता है.
सर्दियों के मौसम में मसूर की खेती किसानों के लिए एक कम पानी, कम लागत और उच्च लाभ वाला विकल्प है. इसमें मेहनत कम और आमदनी ज्यादा होती है. सही समय पर बुआई और उचित देखरेख से किसान इस फसल से मालामाल हो सकते हैं. यही वजह है कि देश के कई हिस्सों में किसान गेहूं की जगह अब मसूर की खेती को प्राथमिकता देने लगे हैं.