हाईकोर्ट बार एसोसिएशन इंदौर ने शनिवार को जस्टिशिया-2025 ग्रैंड लॉ कॉन्क्लेव का आयोजन किया। खंडवा रोड स्थित तक्षशिला परिसर, डीएवीवी ऑडिटोरियम में हुए कार्यक्रम में सुप्रीम कोर्ट एवं मध्यप्रदेश हाई कोर्ट के न्यायमूर्तियों ने आर्ट ऑफ क्रॉफ्ट, मोरल एंड ए
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शुरुआत हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रितेश इनानी के स्वागत उद्बोधन से हुई। इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक चितले ने उद्बोधन दिया। आयोजन में मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने भी शिरकत की।
वकालत दलील का खेल नहीं, सत्य की इबादत है कॉन्क्लेव में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जितेंद्र माहेश्वरी ने अधिवक्ताओं को कहा कि वकालत केवल दलीलों की कला नहीं, बल्कि सत्य और नैतिकता की इबादत है। अधिवक्ता ऑफिसर ऑफ द कोर्ट होते हैं। उनका पहला दायित्व न्याय और सत्य के प्रति होता है, न कि केवल क्लाइंट की हर कीमत पर जीत।
यदि किसी वकील का मोरल हर हाल में केवल अपने क्लाइंट को जीत दिलाने का हो या वह तथ्यों को तोड़े-मरोड़े, तो वह गलत रास्ते पर हैं। सत्य सर्वोपरि है। जो खुद को जलाकर दूसरों को रोशनी दे, वही सच्चा वकील है।
भाषा में तहजीब होनी चाहिए जस्टिस माहेश्वरी ने विपक्ष के प्रति शिष्टता को वकालत का अनिवार्य गुण बताते हुए कहा कि नेहरू भी कहते थे कि जब तक मजबूत विपक्ष नहीं होगा, हम निखर नहीं पाएंगे।
भाषा में तहज़ीब होनी चाहिए। जब आप कोर्ट से बाहर निकलें तो विपक्षी पक्ष भी आपकी वकालत का कायल हो। उन्होंने कहा कि वकील का काम निडर होना चाहिए। मिसालें बहुत हैं अंधेरे में लड़ने की लेकिन जो खुद उजाला बनकर दूसरों के लिए रोशनी करे, वही सही मायने में वकील है। कानून की किताबें वकील बनाती हैं, कोर्ट क्राफ्ट सफल वकील बनाते हैं।
जस्टिस माहेश्वरी ने अधिवक्ता नाना पालकीवाला का उल्लेख करते हुए कहा जब वे बोलते थे तो लगता था कि वे बहस नहीं कर रहे, बल्कि जटिल पहेली को सहजता से सुलझा रहे हैं।” उनकी सफलता का राज था कि वे विपक्षी को नहीं हराते थे, बल्कि कोर्ट की मदद कर रहे होते थे।
सफल वकालत के सूत्र
- सबसे पहले जज को पढ़िए। उनका रुझान, प्रवृत्ति, सवाल।
- केस की ब्रीफ अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- ड्राॅफ्टिंग मजबूत होनी चाहिए, क्योंकि वही केस की नींव है।
- प्रेजेंटेशन सटीक, संक्षिप्त और विनम्र हो।
- 2 घंटे बहस करने से कुछ नहीं होता, बात सारगर्भित होनी चाहिए।
कॉन्क्लेव में अतिथि न्यायमूर्तियों का सम्मान किया गया।
वकील विनम्र हो तो जज भी संवेदनशील होता है सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने अधिवक्ता विकास यादव को श्रद्धांजलि देते हुए अपने उद्बोधन की शुरुआत की। उन्होंने कहा कि यदि वकील विनम्र होता है, तो न्यायाधीश भी संवेदनशील होते हैं। वे पीड़ा को समझते हैं। निगेटिविटी बहुत तेजी से फैलती है, जबकि सकारात्मक प्रयासों की चर्चा कम होती है।
उन्होंने वकीलों को याद दिलाया कि अधिवक्ता की नैतिक जिम्मेदारी अदालत के भीतर और बाहर दोनों जगह समान रूप से बनी रहती है। आप कोर्ट के बाहर जो बोलते हैं, उसकी प्रतिध्वनि अंदर तक पहुंच जाती है। कई बार उससे एक कदम आगे आपकी चिट्ठियां भी पहुंच जाती हैं। दुर्भाग्य यह है कि कई बार हमें हमारे बारे में ही बताया जाता है, लेकिन इससे कुछ बदलता नहीं है।
तर्क न्यायसंगत हैं, तो राहत अवश्य मिलेगी जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा यदि किसी केस में दम है, तथ्य मजबूत हैं और तर्क न्यायसंगत हैं, तो राहत अवश्य मिलेगी। सफलता पाने का शॉर्ट कट नहीं है। सफलता लिफ्ट से नहीं सीढ़ी चढ़कर मिलती है, इसके लिए अपने वरिष्ठ अधिवक्ताओं के साथ सीखने की जरूरत है। पेशे में धैर्य और विनम्रता जरूरी है।
एक अच्छा वकील दलील देता है लेकिन ग्रेट लॉयर मनवा लेता है मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ के जस्टिस विजय कुमार शुक्ला ने नए अधिवक्ताओं में एटिकेट्स की कमी पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि उन्हें नहीं पता कोर्ट में कैसे पेश होना है, डायस कैसे छोड़ना है, इसलिए उन्हें किसी एडवोकेट का ऑफिस जॉइन करना चाहिए। यूनिफॉर्म बहुत साफ होना चाहिए और स्मार्टली पहनना चाहिए। प्रेजेंटेबल दिखना चाहिए। सबमिशन छोटा होना चाहिए न कि विस्तृत। एक अच्छा वकील दलील देता है और ग्रेट लायर मनवा लेता है।
हर फाइल में एक लाइफ, वकील समाज के हीलर्स हैं मध्यप्रदेश हाई कोर्ट (ग्वालियर बेंच) के जस्टिस आनंद पाठक ने एडवोकेसी के 7 लैंपों के बारे में प्रकाश डाला। उन्होंने ईमानदारी, साहस, निर्भीकता, मेहनत, सत्यनिष्ठा जैसे अधिवक्ताओं के गुण बताए। उन्होंने कहा अधिवक्ता समाज के हीलर्स होते हैं। हीलर का गुण है किसी के कष्ट को उसी के अनुरूप महसूस करना आता है तो आप अच्छे प्रोफेशनल हैं।
संवेदनशीलता हर फाइल में एक लाइफ है। यदि संवेदनशीलता के साथ कोई केस देख रहे हैं तो आप वकालात के 7 लैंप का प्रयोग कर रहे हैं। कई गुणों को पाने के लिए जस्टिस पाठक ने चार फिटनेस पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि यह पेशा 10 से 14 घंटे मेहनत की मांग करता है जिसके लिए आपको फिजिकल फिटनेस जरूरी है।
इसके बाद मेंटल फिटनेस में लॉ बुक्स पढ़ने के अलावा जनरल रीडिंग की भी आदत होनी चाहिए। यदि मेंटल फिटनेस लेना है तो जितना ज्यादा आप पढ़ेंगे, उतनी आपकी लर्निंग बढ़ेगी। ट्रेवलिंग भी लर्निंग बढ़ाती है। फिर इंट्रैक्शन। इसके बाद इमोशनल फिटनेस, निर्णय आपके पक्ष में आने-नहीं आने पर आपका वक्तव्य बदल जाता है।
संतुष्टि का भाव रहेगा तभी हीलिंग का भाव आ पाएगा जस्टिस आनंद पाठक ने कहा कि इस फील्ड में हाई-लो चलता है। कई बार आपके पक्ष में फैसला आता है, कई बार नहीं आता है, इसके लिए इमोशनली फिट होना चाहिए। चौथी फिटनेस आध्यात्मिक फिटनेस है। आपको पता होना चाहिए कि हम यहां एक रोल प्ले कर रहे हैं, उतार-चढ़ाव ऊपर वाले की मर्जी है। इससे हमें संतुष्टि का भाव रहेगा तभी हीलिंग का भाव आ पाएगा। संघर्ष कटुता नहीं दे इसलिए इमोशनल और फिटनेस बनाए रखना जरूरी है।
क्रॉस एक्जामिनेशन लंबे न हो, पॉइंट टू पॉइंट हो मप्र हाई कोर्ट जबलपुर मुख्य पीठ के जस्टिस विवेक रुसिया ने कहा अधूरी तैयारी न केवल वकील को बल्कि न्याय को भी कमजोर करती है। इसलिए पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में पेश होना चाहिए। वकालत केवल दलीलों का काम नहीं, क्रॉस एक्जामिनेशन लंबे न हो, पॉइंट टू पॉइंट हों। न्यायालय में आचरण की अधिवक्ता की असली पहचान बनता है।
उन्होंने SID का लाइफ सूत्र देते हुए कहा S- speak with clarity, I- interpretate with intigrity, D-display dignity। जस्टिस केवल होना नहीं चाहिए, दिखना भी चाहिए। सत्यनिष्ठा वकालात की प्राण वायु है। क्लाइंट का विश्वास नहीं टूटना चाहिए। अच्छे अधिवक्ता चतुर नहीं सीनियर होते हैं।
वे पूरी तैयारी से आते हैं। उनमें हयुमिलिटी, डिसिप्लिन होता है। वकालत में केस हार-जीत में भाग्य की भी बड़ी भूमिका निभाता है इसलिए केस हारने पर खिन्न नहीं होना चाहिए।