आंखों की रोशनी गई, फिर भी नहीं गया हौसला, MP ब्लाइंड टीम तक पहुंचा शुभम; स्टोरी कर देगी भावुक

आंखों की रोशनी गई, फिर भी नहीं गया हौसला, MP ब्लाइंड टीम तक पहुंचा शुभम; स्टोरी कर देगी भावुक


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शुभम को बचपन से ही आंखों में दिक्कत थी. आंख आया करती थी. जहां डॉक्टर्स ने आई ट्यूब लगाने की सलाह दी थी. जब शुभम ने आई ट्यूब लगाना शुरू किया, तब आंखें ठीक तो नहीं हुई, उल्टा आई ट्यूब्स से रिएक्शन हो गया और दिखाई देना ही बंद हो गया. जिसके चलते शुभम के माता-पिता परेशान हुए, कई बड़े डॉक्टर्स को भी खूब दिखाया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. अंत में डॉक्टर ने

Success Story: कहते हैं मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है. पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है. आज कहानी जबलपुर की उस ब्लाइंड प्लेयर की, जो बचपन से ही ब्लाइंड है और एक आंख जिनकी पत्थर की है. जिन्होंने बचपन से ही खूब संघर्ष किया… लिहाजा अब मध्यप्रदेश की ब्लाइंड टीम का हिस्सा है. जबलपुर के एक गांव पनागर से आने वाले शुभम पटेल, जिनकी उम्र महज 22 वर्ष है.

शुभम के पिता खेती किसानी करते है और मां हाउस वाइफ है. शुभम को बचपन से ही आंखों में दिक्कत थी. आंख आया करती थी. जहां डॉक्टर्स ने आई ट्यूब लगाने की सलाह दी थी. जब शुभम ने आई ट्यूब लगाना शुरू किया, तब आंखें ठीक तो नहीं हुई, उल्टा आई ट्यूब्स से रिएक्शन हो गया और दिखाई देना ही बंद हो गया. जिसके चलते शुभम के माता-पिता परेशान हुए, कई बड़े डॉक्टर्स को भी खूब दिखाया. लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी. अंत में डॉक्टर ने आंख निकाल कर, पत्थर की आंख लगाने की सलाह दी.

नहीं मानी हार
शुभम का कहना है बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था. लेकिन पढ़ाई करनी थी, जिसको लेकर पहले गांव के ही स्कूल में दूसरी क्लास तक पढ़ाई की. इसी दौरान गांव के ही एक भैया ने ब्लाइंड स्कूल में एडमिशन कराने की सलाह दी. जिसके बाद जबलपुर के ब्लाइंड स्कूल से 12 वीं तक पढ़ाई पूरी की. उन्होंने बताया सपना पढ़ लिखकर ऑफिसर बनने का था. जिसको लेकर ग्रेजुएशन की डिग्री के लिए जबलपुर के कॉलेज में एडमिशन लिया और एमए की डिग्री भी क्राफ्ट से सब्जेस्ट से हासिल की. इस दौरान बकायदा क्रिकेट की प्रैक्टिस भी किया करते थे.

MP की टीम में हुआ सिलेक्शन
उन्होंने बताया मध्यप्रदेश के कई जिलों में टूर्नामेंट खेला करते थे, लेकिन दिल्ली जाने का मौका ज्ञानी भैया के कारण मिला क्योंकि किसी कारण वह टूर्नामेंट में शामिल नहीं हो पा रहे थे. जिसके चलते उन्होंने मेरी टिकट दिल्ली के लिए कराई, फिर मुझे दिल्ली में क्रिकेट खेलने का मौका मिला और यहीं से मध्यप्रदेश की ब्लाइंड टीम के साथ खेलने की शुरुआत हुई. उन्होंने बताया उस मैच में मुझे ओपनिंग करने उतारा गया, लेकिन  3 बॉल में महज 5 रन मारकर कैच आउट हो गया. जिसके बाद से ही यह कारवां जारी हैं और बतौर ऑलराउंडर टीम का हिस्सा बना हुआ हूं.

जीवन में आती है परेशानी
शुभम का कहना है परेशानियों का नाम ही जीवन है परेशानियां आती रहेंगी, लेकिन कभी भी हार नहीं मानना चाहिए क्योंकि हार के बाद ही जीत होती है. उन्होंने बताया जब भारत की महिला ब्लाइंड टीम वर्ल्ड कप उठा सकती है, तब हम पुरुष होकर कैसे हार मान सकते हैं, यही बातें काफी मोटिवेट करती है.

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