लग्जरी गाड़ियां छोड़ बैलगाड़ी में बैठ पहुंचे केसरिया जैन तीर्थ: लगे जय केसरियानाथ के जयकारे; सालों की परंपरा को रखा कायम – Ratlam News

लग्जरी गाड़ियां छोड़ बैलगाड़ी में बैठ पहुंचे केसरिया जैन तीर्थ:  लगे जय केसरियानाथ के जयकारे; सालों की परंपरा को रखा कायम – Ratlam News


पौष माह की अमावस्या पर रतलाम के अति प्राचीन केसरियानाथ जैन तीर्थ बिबड़ौद का मेला शनिवार को लगा। सालों की परंपरा निभाते हुए जैन समाज के लोगों ने अपनी बड़ी लग्जरी गाड़ियों को छोड़ बैलगाड़ियों में सवार होकर इस मेले में पहुंचे।

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तीर्थ में स्थित आदिनाथ प्रभु के दर्शन वंदन किए। भगवान की प्रतिमा की सोने-चांदी के डायमंड वर्क से अनुपम अंग रचना की।

बिबड़ौद जैन तीर्थ रतलाम से करीब 7 किमी दूर रतलाम-बाजना मार्ग पर स्थित है। पौष माह की अमावस्या पर लगने वाले मेले में बड़ी सख्या में श्रद्धालु दर्शन-वंदन व पूजन के लिए केसरिया नाथ तीर्थ पहुंचते हैं।

यहां मंदिर में स्थित पार्श्व प्रभु, मणिभद्र देव का आकर्षक श्रृंगार किया गया। मंदिर को सजाया गया। प्रभु के दर्शन वंदन करने आने वाले श्रद्धालुओं का तिलक लगाकर स्वागत किया। कैबिनेट मंत्री चेतन्य काश्यप भी जैन तीर्थ पहुंचे। प्रभु के दर्शन किए। यहां तीर्थ कमेटी ने उनका स्वागत किया।

बैलगाड़ी में सवार होकर मेले में जाते समाजजन।

प्रभु की जय-जयकार करते पहुंचे रतलाम का जैन समाज बड़ी संख्या में परिवार के साथ यहां पर आता है। खास बात यह है कि समाजजन बैलगाड़ी में थाली व ढोल की थाप के साथ, प्रभु की जय-जयकार करते हुए रतलाम से यहां हैं। जैन समाज के अलावा अन्य समाज के लोग भी इस मेले में आते हैं।

केसरिया जैन तीर्थ में दर्शन के लिए कैबिनेट मंत्री चेतन्य काश्यप भी पहुंचे। ट्र्स्ट पदाधिकारियों ने स्वागत किया।

केसरिया जैन तीर्थ में दर्शन के लिए कैबिनेट मंत्री चेतन्य काश्यप भी पहुंचे। ट्र्स्ट पदाधिकारियों ने स्वागत किया।

प्रभु की जय-जयकार करते समाजजन बैलगाड़ी पर सवार हुए।

प्रभु की जय-जयकार करते समाजजन बैलगाड़ी पर सवार हुए।

लकड़ी के झूले मेले में झूले के साथ खान-पान से लेकर बच्चों के मनोरंजन के भी साधन होते हैं। खासकर यहां पर लकड़ी के झूले भी लगते हैं जो किसी मशीनरी नहीं बल्कि हाथ से चलाए जाते हैं।

इसलिए बैलगाड़ी में आते है तीर्थ ट्रस्टी पदाधिकारी पारस भंडारी ने बताया धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान केसरिया नाथ ऋषभ देव जी का चिन्ह बैल था। पुराने समय में मोटर गाड़ी व अन्य साधन नहीं थे। केवल बैलगाड़ी ही थी। तब बैलगाड़ी में सवार होकर आते थे। उसी परंपरा का आज भी निर्वहन समाजजन कर रहे हैं। जैन समाज के अलावा भी अन्य समाज के लोग भी बड़ी संख्या में मेले में आते हैं।



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