उज्जैन. धार्मिक नगरी उज्जैन मे धर्म-कर्म के साथ शिक्षा को भी खास महत्व दिया जाता है. लेकिन इन दिनों एक स्कूल की हालत इतनी खराब है कि पूरा गांव परेशान हो चूका है. इस गांव के एक बुजुर्ग शख्स नें गुरुवार को कुछ ऐसा किया की पुरे शहर मे चर्चा हो रही है. बता दे कि उम्र जब आराम की होती है, उस उम्र में अगर कोई बुजुर्ग बच्चों के भविष्य के लिए 90 किलोमीटर पैदल चलकर प्रशासन के दरवाजे पर पहुंचे, तो यह सिर्फ एक खबर नहीं बल्कि सिस्टम पर एक बड़ा सवाल बन जाती है.
दरसल पूरा मामला मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले का है. यहा ऐसा ही एक झकोर देने वाला दृश्य सामने आया, जब 79 वर्षीय अंबाराम परमार 81 आवेदनों की माला पहनकर कलेक्टर कार्यालय पहुंचे और भारी गले से बोले “मैं 90 किलोमीटर पैदल चलकर आया हूं, साहब… पहले मेरे गांव में स्कूल बनवाइए.
आखिर क्यों पड़ी ऐसा करने की जरूरत
पूरा मामला उज्जैन जिले के पास नागदा तहसील से करीब 90 किलोमीटर दूर बसे गांव भड़ला का है. जहां बीते 13 वर्षों से बच्चे स्कूल भवन का इंतजार कर रहे हैं. आज़ादी के इतने वर्षों बाद भी गांव के नन्हे बच्चे खुले आसमान के नीचे, कभी पेड़ की छांव में तो कभी एक बुजुर्ग के आंगन में पढ़ने को मजबूर हैं. अंबाराम परमार वही शख्स हैं, जिनके आंगन में गांव का प्राथमिक स्कूल लगता है. पहली से पांचवीं तक के करीब 29 बच्चे रोज़ उनके आंगन में बैठकर अक्षर ज्ञान लेते हैं. वर्ष 2013 में शुरू हुआ यह स्कूल आज भी भवन से वंचित है. शुरुआत में झोपड़ी बनाकर पढ़ाई करवाई गई, लेकिन समय बदला, हालात नहीं बदले.
हर दफ्तर मे दे चुके है ज्ञापन
अंबाराम परमार से जब लोकल 18 की टीम नें बात करी तो उन्होंने बताया कि, ग्राम पंचायत से लेकर जिला प्रशासन तक हर दरवाजे पर दस्तक दी इतना ही नही विधायक, सांसद, शिक्षा विभाग के साथ कोई मंच नहीं छोड़ा.13 वर्षों में 81 आवेदन दिए, लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन मिला. जब कोई सुनवाई नहीं हुई, तो उन्होंने अपने संघर्ष को प्रतीक बनाने का फैसला किया.
तीन दिनों का सफर फिर उज्जैन मे लगाई गुहार
तीन दिन, लगातार पैदल चलकर वे कलेक्टर कार्यालय पहुंचे. थके कदम, झुका शरीर, परमार नें बताया, इन बच्चों का कसूर क्या है? बारिश में गांव तक सड़क नहीं है, स्कूल भवन नहीं है, अगर अब भी बात नहीं सुनी गई तो मैं भोपाल जाऊंगा, फिर दिल्ली जाऊंगा. भूख हड़ताल भी करूंगा, लेकिन बच्चों को स्कूल दिलवाकर रहूंगा.
आवेदन 51 समस्या मे मांगा कलेक्टर से जवाब
गांव की शिक्षिका हंसा बैरागी बताती हैं कि संसाधनों के अभाव में पढ़ाना बेहद मुश्किल हो जाता है. बारिश के दिनों में हालात और भी खराब हो जाते हैं. शिक्षक मनोज दास कहते हैं कि सड़क नहीं होने के कारण गांव तक पहुंचना ही चुनौती बन जाता है. स्कूल भवन का निर्माण ग्रामीणों और अंबाराम परमार के सहयोग से शुरू तो हुआ, लेकिन आज भी अधूरा पड़ा है.79 साल के इस बुजुर्ग का यह संघर्ष सिर्फ एक गांव की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है, जहां फाइलों में शिक्षा के दावे तो बड़े हैं, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद दर्दनाक है. अब देखना यह है कि प्रशासन इस बुजुर्ग की पदयात्रा को सिर्फ खबर मानकर भूल जाता है या बच्चों के भविष्य को संवारने के लिए कोई ठोस कदम उठाता है.