मामला शहडोल जिले के ब्यौहारी स्थित दो सरकारी स्कूलों, हाई स्कूल सक्कन्दी और उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, निपानिया का है. इन दोनों स्कूलों में ऑयल पेंट खरीदने और उसे लगाने के नाम पर जो खर्च दिखाया गया है, वह किसी भी सामान्य व्यक्ति को चौंकाने वाला है. लोगों का कहना है कि सैकड़ों मजदूर और मिस्त्री को कैसे लगाया गया ? क्या एक ही ठेकेदार, सुधाकर कंस्ट्रक्शन के पास सैकड़ों मजदूर और मिस्त्री काम करते हैं? अगर ऐसा है तो क्या उसने इन मजदूरों को लेकर सरकार से लाइसेंस लिया है? ठेकेदार, सुधाकर कंस्ट्रक्शन के बैंक खातों से पता चल सकता है कि क्या उसने मजदूरों और मिस्त्री और अन्य निर्माण एजेंसियों को पेमेंट किया, या फिर ये रकम किसी और खातों में या किसी और सरकारी अफसर की जेब में पहुंच गई.
सोशल मीडिया में वायरल हो रहे बिलके अनुसार सरकारी हाई स्कूल सक्कन्दी में महज 4 लीटर ऑयल पेंट खरीदा गया, जिसकी कीमत ₹784 (₹196 प्रति लीटर) बताई गई. लेकिन इस छोटे से काम के लिए जो मानव मजदूरों लगाया गया, वह अविश्वसनीय है. बिलों के अनुसार, इस 4 लीटर पेंट को दीवारों पर लगाने के लिए 168 मजदूरों और 65 मिस्त्रियों को काम पर लगाया गया. इन सभी का कुल भुगतान ₹1,06,984 तक पहुंच गया. यह आंकड़ा अपने आप में कई सवाल खड़े करता है: क्या 4 लीटर पेंट लगाने के लिए सचमुच इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों और मिस्त्रियों की आवश्यकता थी? क्या इन सभी ने वास्तव में काम किया था, या यह सब केवल कागजों पर था? क्या इन मजदूरों को रकम का भगुतान किया गया और कितनी रकम और किस माध्यम से दी गई. अगर इन्हें उसी दिन नकद भुगतान किया गया था तो क्या ठेकेदार ने इसकी कोई जानकारी सरकार को दी थी.
दूसरा मामला: उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, निपानिया ब्यौहारी
दूसरा मामला और भी अधिक चौंकाने वाला है. उच्चतर माध्यमिक विद्यालय निपानिया में कुल 20 लीटर पेंट खरीदी गई. इस पेंट को लगाने के लिए 275 मजदूरों और 150 मिस्त्रियों को काम पर लगाया गया, जिनका कुल भुगतान ₹2,31,650 तक पहुंच गया. इस खर्च में खिड़कियों और दरवाजों की रंगाई का खर्च भी शामिल बताया गया है. 20 लीटर पेंट के मुकाबले यह खर्च कहीं ज्यादा है, और यह स्पष्ट रूप से संकेत देता है कि कहीं न कहीं बड़ी गड़बड़ हुई है.
इन दोनों ही मामलों में एक ही ठेकेदार, सुधाकर कंस्ट्रक्शन, का नाम सामने आया है. यह भी गौर करने लायक है कि दोनों बिल एक ही तारीख, 5 मई 2025 को कटे हैं, जिससे संदेह और गहरा होता है कि यह एक सोची-समझी साजिश हो सकती है. इन बिलों पर संबंधित विद्यालयों के प्रधानाचार्यों और जिला शिक्षा अधिकारी के हस्ताक्षर और सरकारी सील भी लगी हुई हैं, जो इस मामले की गंभीरता को और बढ़ा देती है. इसका मतलब है कि यह भुगतान आधिकारिक चैनलों के माध्यम से हुआ है. ठेकेदार सुधाकर कंस्ट्रक्शन का कहना है कि उन्होंने “नियम-कायदों और सरकारी व्यवहार” का पूरा पालन किया है और उनके “सैकड़ों मजदूर और मिस्त्री” इस काम में लगे थे. लेकिन यह स्पष्टीकरण उन आंकड़ों से मेल नहीं खाता जो बिलों में दर्शाए गए हैं. क्या इतने मजदूर और मिस्त्री वास्तव में छोटे से रंगाई-पुताई के काम में लगे थे, या यह केवल श्रम शुल्क के नाम पर पैसों की हेराफेरी थी?
वायरल बिल की पुष्टि News18 नहीं करता है; इन बिलों की जांच हो रही है.
प्रशासन की चुप्पी और सवालों के घेरे में जवाबदेही
यह घोटाला कई अनसुलझे प्रश्न खड़े करता है. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या 4 या 20 लीटर पेंट में इतनी बड़ी संख्या में मजदूर और मिस्त्री सचमुच काम कर सकते हैं? क्या यह सब कागजों में ही रंगाई-पुताई हुई है और जमीन पर काम हुआ ही नहीं? जिला शिक्षा अधिकारी फूल सिंह मारपाची ने इस मामले में जांच की बात कही है, लेकिन क्या यह जांच वस्तुतः निष्पक्ष और पारदर्शी होगी? क्या इस पेंट घोटाले की जांच के बाद दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी या हमेशा की तरह यह मामला भी दबा दिया जाएगा? यह एक बड़ा प्रश्न है, क्योंकि ऐसे मामलों में अक्सर जांच के नाम पर लीपापोती कर दी जाती है. तत्कालीन प्राचार्य शासकीय हाई स्कूल सक्कन्दी, सुग्रीव शुक्ला, ने मीडिया से बचते हुए कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं दी और कहा कि यह सब उनकी जानकारी में नहीं है क्योंकि वह दिसंबर में आए थे. वहीं, डीईओ शहडोल, फूल सिंह मारपाची, ने कहा कि वायरल वीडियो के आधार पर जांच की जा रही है और तथ्यों के आधार पर कार्रवाई होगी. इस मामले में कलेक्टर की भी कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे प्रशासन की उदासीनता झलकती है.