आम और बरगद से शुरुआत
प्रो. संनखेरे ने 1986 में पॉलिटेक्निक कॉलेज में कार्यभार संभाला और 1992 में कॉलेज क्वार्टर में आकर स्थायित्व से रहने लगे. उस समय परिसर में हरियाली का नामोनिशान नहीं था. लेकिन किसान परवरिश पाकर उन्हें चरितार्थ हरियाली से मोह था. उन्होंने एक आम का पौधा, अपनी मौसी के लड़के शांति लाल और कॉलेज के कुछ साथियों के साथ मिलकर लगा दिया.
परिवार का हर सदस्य लायंस क्लब, गायत्री परिवार, साथी शिक्षक काशिव, गजानन ओशवाल इस कदम में शामिल हुआ. विद्यार्थी भी प्रेरित होकर पौधे लगाते रहे. प्रो. संनखेरे ने जन्मदिनों पर वर्ष के अनुसार पौधे रोपने की परंपरा शुरू की, जिसके चलते आज 1,350 से 1,400 आम के पेड़ उनकी पौध वाटिका में खड़े हैं.
2002 में जब उनके पिता को कैंसर हुआ और डॉक्टर्स ने उम्मीद कम बताई, तब उन्होंने पिता के हाथ से बरगद का पौधा लगाकर हरित विरासत को घरवाटिका में स्थापित किया. यह वो पेड़ था जो उनके पिता की याद के साथ चला, बाद में उन्होंने उसे क्लेम-पद्धति से काटकर ले जाकर लॉकडाउन के दौरान 5,000 नए पौधे तैयार किए. ये पौधे त्रिवेणी, मिशन ग्रीन समेत आसपास के गांवों और संस्थानों में वितरित किए गए.
5000 पौधे…हरित सफलता की गाथा
कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान जब सामान्य जीवन ठप था, प्रो. संनखेरे ने अकेले नहीं बल्कि गजानन भाई समेत समूह के सहयोग से पूरे कैंपस में 5,000 बरगद के पौधे तैयार किए और वितरण अभियान चलाया. आज इनमें से कम से कम 2,500 पौधे जीवित एवं फल-फूल रहे हैं. वहीं कॉलेज परिसर में संखेरे “हरित क्रांति” के सक्रिय हस्ताक्षर बन चुके हैं.
प्रो. संनखेरे पर्यावरण संबंधी आयोजनों में बोलते हैं और पौधे भेंट करते हैं. हालाँकि हर किसी को फ्री पौधे देने से उन्होंने दूरी बनाई है, बहुत से लोग सिर्फ सेल्फी लेकर पौधे छोड़ जाते हैं. लेकिन उनकी देने की भावना हमेशा दृढ़ रही,जहाँ पौधे की सुरक्षा होगी, वहां वे योगदान देने को तैयार रहते हैं.
विरासत और भविष्य
फरवरी 2026 में जब वे निवृत्त होंगे, तब भी यह पौधे और हरियाली उनकी अमिट छाप के रूप में कॉलेज परिसर और शहर को दे चुकी होगी. बागवानी टीम में कई साथी रहे, और अब कुछ ही जमे हुए हैं, जिनके सहयोग से यह अभियान जारी है. प्रो. संखेरे कहते हैं कि मैं कॉलेज की तनख्वाह लेकर परिवार को चला रहा हूँ, लेकिन यह वृक्ष हमें आने वाली पीढ़ियों से बांधते हैं, यही मेरी असली विरासत है.”