Last Updated:
Amle ki Kheti se Munafa: बघेलखंड के किसान अब बदलते खेती के दौर के अनुसार खुद को ढाल रहे हैं और आलांव जैसी लाभकारी फसल की खेती और प्रोसेसिंग के माध्यम से आत्मनिर्भरता की ओर कदम बढ़ा रहे हैं. सरकार की योजनाओं और …और पढ़ें
विशेषज्ञ ने दी जानकारी
लोकल 18 से विशेष बातचीत में सोहावल ब्लॉक की ग्रामीण उद्यान विस्तार अधिकारी मीनाक्षी वर्मा ने बताया कि आंवले की खेती में अब एनए-7, कृष्णा, कंचन और जगैया जैसी वैरायटी का अधिक प्रयोग किया जा रहा है. ये वैरायटी जल्दी फल देते हैं और स्वाद में भी जूसी होती हैं. एक परिपक्व पेड़ से किसान हर साल करीब एक क्विंटल आंवला प्राप्त कर सकते हैं.
अप्रैल-मई के दौरान 1×1 फीट के गड्ढे खोदकर 6×6 फीट की दूरी पर प्लांटेशन की तैयारी की जाती है. गड्ढों को 10-15 दिन तक खुला छोड़ने से सूर्य की गर्मी से हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस नष्ट हो जाते हैं. इसके बाद FYM (गोबर की खाद) और फास्फोरस मिलाकर गड्ढों को भर दिया जाता है और जून-जुलाई में पौधारोपण कर दिया जाता है. मानसून और सर्दियों में पानी की ज़रूरत कम होती है, जबकि गर्मी में दिन में एक-दो बार सिंचाई की जरूरत होती है.
स्वास्थ्य और व्यापार दोनों में फायदेमंद
आंवला विटामिन सी से भरपूर होता है और इम्युनिटी बढ़ाने, बालों के झड़ने से लेकर खून की कमी और भूख बढ़ाने तक में उपयोगी है. यही कारण है कि किसान अब इसके प्रोसेसिंग यूनिट भी लगा रहे हैं जहां आंवले से कैंडी, मुरब्बा, च्यवनप्राश, जूस, चटनी और पाउडर जैसे उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं.
उन्होंने बताया कि उद्यानिकी विभाग द्वारा किसानों को आंवले की खेती के लिए अनुदान पर ग्राफ्टेड पौधे दिए जाते हैं. साथ ही प्रधानमंत्री फॉर्मलाइजेशन ऑफ माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज (PMFME) योजना के तहत प्रोसेसिंग यूनिट लगाने पर 35% तक की सब्सिडी भी दी जाती है.
सतना मैहर के किसान बन रहे मिसाल
सतना के मझगवां क्षेत्र समेत कई गांवों में किसान न केवल बगीचे लगा रहे हैं बल्कि प्रोसेसिंग यूनिट खोलकर आंवले की कैंडी और अचार तैयार कर रहे हैं. इससे न केवल स्थानीय स्तर पर रोजगार बढ़ रहा है बल्कि किसानों की आमदनी में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है.