आशीष पांडे/शिवपुरी: ये कोई मामूली खंडहर नहीं हैं, ये वो जगह है, जहां कभी अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ आज़ादी की आग सुलगती थी. हम बात कर रहे हैं बिहारी मंदिर की, जो शिवपुरी के पास खनियाधाना क्षेत्र में स्थित है. आज भले ही यह जगह खामोश और उजड़ी हुई दिखती हो, लेकिन कभी यहां रात के अंधेरे में देश की आज़ादी की बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाई जाती थीं.
स्थानीय लोगों की मानें तो इस मंदिर का सीधा नाता देश के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आज़ाद से जुड़ा हुआ है. बताया जाता है कि आज़ाद यहां नाम बदलकर रहा करते थे. अंग्रेज़ों से बचने के लिए उन्होंने खुद को एक साधारण साधु या पुजारी के रूप में प्रस्तुत किया. लोग उन्हें पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी या पंडित हरिशंकर शर्मा के नाम से जानते थे.
आज़ाद दिन में साधु की तरह रहते थे
स्थानीय बुज़ुर्ग बताते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद दिन में साधु की तरह रहते थे, पूजा-पाठ करते थे, और जैसे ही रात होती थी, यहां क्रांतिकारियों की गुप्त मीटिंग शुरू हो जाती थी. इन बैठकों में अंग्रेज़ों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति तय की जाती थी. कौन-सा इलाका सुरक्षित है, कहाँ हमला करना है, किसे संदेश पहुंचाना है-सब कुछ यहीं तय होता था.
राजा खलक सिंह जूदेव की भूमिका भी अहम
इतना ही नहीं, इस पूरे आंदोलन में खनियाधाना के राजा खलक सिंह जूदेव की भूमिका भी अहम बताई जाती है, कहा जाता है कि राजा अपने महल की सुख-सुविधाएं छोड़कर खुद गोविंद जी मंदिर में बैठकों के लिए आते थे. स्थानीय लोगों का दावा है कि राजा ने समय-समय पर क्रांतिकारियों को हथियार और बारूद तक उपलब्ध कराए. हालांकि यह सब बेहद गुप्त तरीके से किया जाता था, ताकि अंग्रेज़ों को भनक तक न लगे. आज मंदिर की हालत जर्जर हो चुकी है. दीवारें टूट रही हैं, छत गिरने की कगार पर है, लेकिन इसके बावजूद यहां आने वाले लोग इसे श्रद्धा और सम्मान की नज़र से देखते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उनके पूर्वजों ने उन्हें बताया था कि यही वो जगह है, जहां आज़ादी की नींव मजबूत की गई थी.
ऐतिहासिक स्थल उपेक्षा का शिकार
सुखनंदन चौबे बताते हैं कि उनके दादा-परदादा बताते थे कि आज़ाद जी यहां रात को ठहरते थे. सुबह होते ही कहीं और निकल जाते थे. अंग्रेज़ों को कभी शक नहीं हुआ. यह स्थान हमें याद दिलाता है कि आज़ादी की लड़ाई सिर्फ बड़े शहरों में नहीं लड़ी गई, बल्कि छोटे कस्बों, जंगलों और मंदिरों में भी क्रांति की चिंगारी जलती रही. बिहारी मंदिर उन अनगिनत गुमनाम जगहों में से एक है, जिसने भारत को आज़ादी दिलाने में अहम भूमिका निभाई. समय बीतने के साथ यह ऐतिहासिक स्थल उपेक्षा का शिकार होता गया. आज मंदिर के पास की दीवारों में दरारें पड़ चुकी हैं, छत के कुछ हिस्से गिर चुके हैं और आसपास झाड़ियां उग आई हैं. फिर भी, यहां आने वाले लोगों के मन में इस स्थान के प्रति गहरा सम्मान है. बुज़ुर्ग आज भी अपने पूर्वजों से सुनी बातें अगली पीढ़ी को सुनाते हैं, तो यादें ताजा हो जाती है.