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टीकमगढ़4 दिन पहले
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- भोपालपुरा गांव में बैठक आयोजित कर ली जानकारी, नया बीज नहीं मिलने से किसान स्थानीय किस्मों की कर रहे खेती
कृषि विज्ञान केंद्र टीकमगढ़ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों द्वारा एक जिला एक उत्पाद अंतर्गत अदरक की खेती के संबंध में किसानों से सर्वे एवं उत्पादन संबंधी जानकारी एकत्र करने गांव राजापुर, नयाखेड़ा, कलुआ एवं भोपालपुरा में किसानों के खेतों का भ्रमण किया। साथ ही उन्होंने भोपालपुरा गांव में किसानों के साथ बैठक आयोजित कर अदरक के संबंध में जानकारी एकत्रित की।
भ्रमण के दौरान उन्होंने किसान धर्मदास यादव, रामरतन यादव, राधे यादव, कैलाश साहू, प्रभुदयाल पाल महेश कुशवाहा आदि से अधिक की खेती में व्यय एवं उत्पादन की जानकारी ली। किसानों ने बताया कि एक एकड़ में 6 से 7 क्विंटल बीज लगता है और बीज की बुवाई के समय 8000 से 10000 रुपए प्रति क्विंटल मिलता है। बीज बरुआसागर के व्यापारियों से उधारी में खरीद कर लाते हैं। फिर उनको ही बेच कर आते हैं। साथ ही बीज की राशि पर ब्याज भी देना पड़ता है और उपज की बिक्री राशि पर 5 से 6 प्रतिशत आढ़त भी देनी पड़ती है। एक बोरी पर 50-60 रुपए परिवहन व्यय आता है। जिस पर वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि एक एकड़ अदरक की खेती में लगभग 12 लाख 5000 से 14 लाख तक खर्च आ जाता है। पैदावार 40 से 50 क्विंटल प्रति एकड़ मिल जाती है।
इस प्रकार एक एकड़ से सकल आय 14 लाख से 17 लाख 5000 रुपए प्रति एकड़ तक मिलती है। जिसमें से खर्चा निकालकर शुद्ध आय 15 से 35 हजार रुपए प्रति एकड़ प्राप्त होती है। किसानों ने बताया कि अदरक की खेती में केवल गोबर की खाद ही 14 से 15 ट्राली प्रति एकड़ डालते हैं। बुवाई के बाद कंद को ढकने के लिए तीन ट्राली पलाश के पत्तों का उपयोग करते हैं। जिससे जून-जुलाई में नमी संरक्षण, सिंचाई की बचत और खरपतवारों से बचाव होता है तथा पत्तियां बाद में खाद का काम करती हैं अदरक की फसल और बीमारियों की समस्या सावन एवं भादो माह में ज्यादा आती है।
उत्पादन संगठन बनाने दी सलाह: वैज्ञानिकों ने बैठक में किसानों को लगभग एक किसान उत्पादन संगठन बनाने की सलाह दी गई और कहा कि कम से कम 21 अदरक उत्पादक किसानों की सूची तैयारी करें। फिर से बैठक कर किसान उत्पादन संगठन पर चर्चा करेंगे। इस अवसर पर वैज्ञानिक प्रमुख डॉ. बीएस किरार, डॉ. आरके प्रजापति, डॉ. आईडी सिंह, उप संचालक कृषि एसके श्रीवास्तव, बीटीएम जेपी यादव, उद्यान अधिकारी एनके अत्रे, राजू अहिरवार सहित संबंधित अधिकारी शामिल थे।
वैज्ञानिकों ने नई किस्में की अदरक बोना बताया
वैज्ञानिकों ने अदरक की नई किस्में सुप्रभा, सुरुचि, सुरभि, महिमा आदि के बारे में बताया तो किसानों का कहना था कि नया बीज नहीं मिल पाता है। ज्यादातर किसान स्थानीय किस्मों की खेती कर रहे हैं। सबसे ज्यादा समस्या बाजार की है। स्थानीय स्तर पर खरीदारी नहीं होने के कारण उचित लाभ प्राप्त नहीं हो पा रहा है। खेती में खर्चा ज्यादा लग जाता है। इस फसल से परिवार के सदस्यों को लगभग 7 माह कार्य मिल जाता है। यदि अदरक की नई किस्में और स्थानीय स्तर पर उचित बाजार व्यवस्था हो जाए तो फसल अधिक रोजगार और अधिक लाभ देने वाली सिद्ध होगी।