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- Former CM Kamal Nath Revoked Notification Of Dissolution Of Elected Water Consumers’ Committees Across The State
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जबलपुर8 मिनट पहले
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एमपी हाईकोर्ट का अहम फैसला।
- निर्वाचन के समय जल उपभोक्ता समितियों का कार्यकाल था छह वर्ष, पूर्व सीएम ने पांच वर्ष करते हुए समितियों को कर दिया था भंग
- अधिकतर समितियों में बीजेपी समर्थित प्रत्याशी निर्वाचन में विजयी हुए थे, इस दुर्भावना के चलते पूर्व सीएम ने घटाया था कार्यकाल
मप्र हाईकोर्ट ने पूर्व सीएम कमलनाथ सरकार द्वारा प्रदेश भर की निर्वाचित जल उपभोक्ता समितियों को भंग करने की अधिसूचना निरस्त कर दी है। चीफ जस्टिस मोहम्मद रफीक और जस्टिस विजय शुक्ला की डबल बेंच ने मामले की सुनवाई की। कोर्ट ने सभी समितियों को बहाल करते हुए कार्यकाल पूरा करने का आदेश दिया है।
6 साल के कार्यकाल को घटाकर 5 साल कर दिया था
जानकारी के अनुसार पूर्व सीएम कमलनाथ की सरकार ने 23 जनवरी 2020 को संशोधन करते हुए जल उपभोक्ता समितियों का कार्यकाल छह वर्ष से पांच साल कर दिया था। इसके बाद 7 मार्च 2020 को अधिसूचना जारी कर प्रदेश भर में किसानों द्वारा ब्लॉक स्तर पर चुनी गई जल उपभोक्ता समितियों को भंग करते हुए उनका प्रभार उस क्षेत्र के संबंधित अनुविभागीय अधिकारियों को सौंप दिया था।
हाईकोर्ट में याचिका के माध्यम से दी गई थी चुनौती
इस मामले में पनागर क्षेत्र की जल उपभोक्ता समितियों के निर्वाचित अध्यक्ष किशन पटेल, विनोद उपाध्याय, नीरज पटेल और सुरजीत पटेल ने याचिका लगाई थी। उनकी ओर से हाईकोर्ट में अधिवक्ता आशीष त्रिवेदी ने दलील पेश की कि जब समितियों का चुनाव हुआ तो कार्यकाल निर्वाचन से 6 वर्ष की अवधि के लिए था। ऐसे में निर्वाचित का यह अधिकार था कि वे अपने पूर्ण कार्यकाल तक पद पर रहे। कोई भी भावी संशोधन भूतलक्षी प्रभाव से लागू नहीं किया जा सकता। इन समितियों ने तो संशोधित किए गए 5 वर्ष का कार्यकाल भी पूर्ण नहीं किया है।
राजनीतिक दुर्भावनावश समितियों को किया गया भंग
कोर्ट में याचिकाकर्ताओं की ओर से पैरवी करते हुए अधिवक्ताओं आनंद त्रिवेदी, प्रशांत अवस्थी, असीम त्रिवेदी, सुधाकर मणि पटेल और अपूर्व त्रिवेदी ने बताया कि समितियों को भंग करने का सिर्फ राजनीतिक कारण था। समितियों का जब चुनाव हुआ, तब प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी। अधिकतर चुने गए अध्यक्ष बीजेपी समर्थित थे। इसी दुर्भावना के चलते समितियों का पहले कार्यकाल छह से पांच वर्ष किया गया और फिर सात मार्च 2020 को भंग कर प्रशासक नियुक्त कर दिया गया था।