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- 117 Years Ago … Quarantine Center Was Built In The Garden Of Umrao Dulha In The City During The Plague Epidemic, There Was A Ban On People Sitting In The Tongs That Sit Patients.
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भोपाल4 घंटे पहलेलेखक: एमएम सिद्दीकी
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1904 में छपी पत्रिका इन्सदाद-ताऊन।
- नवाब सुल्तान जहां बेगम ने 1904 से 1914 तक फैली प्लेग बीमारी की रोकथाम के लिए रियासत में उठाए थे सख्त कदम
कोरोनाकाल में प्रदेश सरकार सुरक्षा और बचाव के जो कदम उठा रही है, ठीक वैसे ही 117 साल पहले देश में फैली प्लेग बीमारी के दौरान भोपाल रियासत में भी उठाए गए थे। तब बाहर से आने वाले लोगों को 10 दिन तक शहर से बाहर यानी बाग उमराव दूल्हा में क्वारेंटाइन करने का प्रबंध किया था। भोपाल स्टेशन पर भी एक गार्ड तैनात था।
भोपाल के प्रिंस ऑफ वेल्स अस्पताल (अब सुल्तानिया) के इंचार्ज अधिकारी को भर्ती मरीजों की निगरानी के आदेश दिए थे। इन आदेशों और सुरक्षा इंतजामों का जिक्र नवाब सुल्तान जहां बेगम ने रियासत की पत्रिका इन्सदाद-ताऊन में किया था। इसके जरिए लोगों तक संदेश पहुंचाया जाता था।
पत्रिका में ये संदेश भी…टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं
पत्रिका इन्सदाद-ताऊन में तत्कालीन ख्यातिलब्ध विद्वान मौलाना रशीद अहमद गंगोही के फतवे का भी उल्लेख है। उसमें कहा है कि टीका लगवाने में कोई मजहबी नुकसान नहीं है। टीके के बाद एक प्रमाण-पत्र दिया जाता था। टीका लगने पर संबंधित को क्वारेंटाइन नहीं किया जाता था। इसके अलावा जिस घर में ज्यादा सदस्य हैं, उन्हें अलग घर देने, पर्यावरण एवं स्वच्छता की खातिर गंधक और लोबान जलाने का हुक्मनामा जारी हुआ था, ताकि आसपास का वातावरण शुद्ध रहे।
शवों को ले जाने कोतवाल करते थे वाहन का इंतजाम
महामारी के दौरान किसी की मौत होने पर शवाें को श्मशान घाट या कब्रिस्तान ले जाने के लिए कोतवाल को अलग से वाहन का इंतजाम करने को कहा गया था। इसके लिए अलग से बजट मंजूर था। वहीं, स्वास्थ्य सेवाओं के लिए 10 हजार रुपए का बजट भी स्वीकृत किया गया था।
कब्रिस्तान और श्मशान घाट पर किए गए थे कई इंतजाम
श्मशान घाट पर शवों का अंतिम संस्कार कराने के लिए पंडित बिहारी लाल नारायण, मुंशी दौलत राय को जिम्मेदारी दी गई थी। इन्हें लकड़ी सप्लाई की निगरानी भी सौंपी गई थी। प्लेग से मौत होने पर अलग-अलग कब्रिस्तान में शव को दफनाने का इंतजाम था। वहां 20 फीट लंबे और 15 फीट चौड़े टीन शेड बनाने के आदेश दिए थे।
आज भी शहर के सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद है उस दौर की पत्रिका
नवाब सुल्तान जहां बेगम की यह पत्रिका सेंट्रल लाइब्रेरी में मौजूद है। यह लाइब्रेरी सदस्य रचित मालवीय को मिली। हर पन्ने को उन्होंने सहेजकर रखा। लाइब्रेरी के पाठक अब्दुल जामे से जब इसका हिंदी अनुवाद करवाया तो उसमें उस कार्यकाल में महामारी को रोकने के लिए किए गए इंतजामों का विस्तृत जिक्र मिला।