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नितिन राजावत| शाजापुर3 दिन पहले
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लोगों की मदद के लिए गरीब बस्ती की ओर इस तरह पहुंच रहे शहर के युवा।
- लोगों को खाने और रहने की परेशानियों से जूझते देखा तो करने लगे मदद
शहर में अब कोई भी व्यक्ति भूखे पेट नहीं सोएगा। यदि कोई भूखा है तो उस तक खाना पहुंचाया जाएगा। यह लाइन किसी नेता के भाषण की नहीं, बल्कि शहर के उन युवाओं की जो संकट की घड़ी में लोगों की मदद करने के लिए आगे आए हैं। इन युवाओं में कोई व्यापारी है तो कोई मैनेजमेंट का गुर सिख रहा है। इन सभी का उद्देश्य सिर्फ इतना है कि लोगों में खाने को बरबाद करने की आदत छूटे और दूसरों की मदद भी हो जाए। मानवता के ऐसे ही हीरो की कहानी भास्कर अपने पाठकों तक महज इसलिए पहुंचा रहा है कि मदद करने का जज्बा सार्थक हो सके।
शहर के सोमवारिया बाजार निवासी नवाब परिवार के शिवम नवाब बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने हाईवे पर कई लोगो को संकट की घड़ी में परेशान होते देखा था। पलायन के दौरान शहर के हाईवे से निकलने वाले हर वर्ग के लोगों को मदद की जरूरत थी। ऐसे में उनके परिवार के वरिष्ठ सदस्यों ने उन्हें भी दूसरों की मदद की शिक्षा दी। इसके बाद शिवम खुद आगे रहकर लोगों को दूसरों की मदद करने के लिए जोड़ते चले गए।
दूसरे युवा निखिल शर्मा भी 2 सालों से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोगों तक खाना पहुंचा रहे हैं। दोनोें युवकों ने अपनी इस एक्टिविटी की पोस्ट जब सोशल मीडिया पर डाली तो शहर के करीब 15 से ज्यादा युवाओं की टोली और तैयार हो गई। अब कोई न कोई मदद की भावना के साथ हर दिन गरीब बस्तियों की ओर अपने कदम आगे बढ़ाने लगा है। बीते एक माह में 70-80 से ज्यादा बच्चों के भोजन की व्यवस्था जुटाई है। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर परिवार के बच्चों के लिए संक्रांत का पर्व खास बनाने की तैयारी की है।
चंदा नहीं, सिर्फ जरूरत की वस्तुएं करा रहे दान
शिवम और निखिल दोनों ने दूसरों की मदद करने के लिए अलग-अलग प्रयास किए थे। दोनों का एक ही मकसद होने के कारण इनकी दिसंबर माह में मुलाकात हुई और दूसरों की मदद करने के इस अभियान में और तेजी आ गई। दोनों ने अभियान को इस तरह तैयार किया कि कोई आर्थिक अनियमितताओं की भावनाएं नहीं रहे। निखिल ने बताया कि दूसरों की मदद के नाम पर वे किसी से भी रुपए नहीं लेते हैं। बस जरूरत की वस्तुओं का दान करा रहे हैं।
स्ट्रीट डॉग का इलाज भी : शिवम ने बताया कि सड़क पर घूमने वाले स्ट्रीट डॉग और गाेवंशों की मदद के लिए भी उनकी टोलियां तैयार रहती है। लॉकडाउन के दौरान भोजन नहीं मिलने से कुत्तों में शिकार की प्रवृत्ति बढ़ने से वे हिंसक होने लगे थे तो गोवंश कचरे के साथ पॉलीथिन खाने लगे। जान पर खतरा मंडरा रहा था। ऐसे में इनके भोजन की व्यवस्था की।