भूरी बाई की दिलचस्प कहानी: जिस भारत भवन के निर्माण में भूरी बाई ने सिर पर ढोई थीं ईंटे, आज वहीं बन रहीं हैं मुख्य अतिथि

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  • On The Eve Of Foundation Day Celebrations, Bhuri Bai Got Emotional When She Reached Bharat Bhavan, In The Construction Of This Bharat Bhawan, Bhuri Bai Had Carried Bricks On Her Head, Today She Is Becoming The Chief Guest.

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भोपाल16 मिनट पहलेलेखक: राजेश गाबा

भूरी बाई भारत भवन की गैलरी में अपनी फोटो के सामने खड़ी हैं। यह भारत भवन के 13 फरवरी 1982 में शुभारंभ की फोटो है। इसमें भूरी बाई के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जे स्वामीनाथन और भूरी बाई दिख रही हैं।

  • स्थापना दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर भूरी बाई जब भारत भवन पहुंची तो भावुक हो उठीं
  • भूरी बाई एक फोटो के सामने रुक गई, इस फोटो में भूरी बाई, तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और स्वामीनाथन आ रहे नजर

जिस भारत भवन के निर्माण में एक मजदूर ने सिर पर रखकर ईंटे ढोई थीं, उसी भारत भवन की 39वीं वर्षगांठ समारोह में जब वह मुख्य अतिथि बनेंगी, वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर जब भूरी बाई भारत भवन पहुंची तो वहां की दीवारों को देखकर भावुक हो उठीं।

भारत भवन की गैलरी में घूमते हुए अचानक भूरी बाई एक फोटो के सामने रुक गईं। इस फोटो को देखकर वह भावुक हो उठी। यह फोटो थी 13 फरवरी 1982 की। जब भारत भवन का शुभारंभ करने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी आईं थीं। फोटो में इंदिरा गांधी जी के साथ जे स्वामीनाथन और भूरी बाई नजर आ रही हैं।

भूरी बाई के एक हाथ में एक पत्र है और दूसरे हाथ में उनका बेटा। मजदूर से कलाकार बनीं आदिवासी कलाकार भूरी बाई को पद्मश्री से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। भूरी बाई से दैनिक भास्कर ने उस खत की कहानी पर खास बातचीत की।

अपनी फोटो को भारत भवन की गैलरी में देखकर भावुक हुईं भूरी बाई ने कहा…

‘जब भारत भवन बनकर तैयार हो गया था। इंदिरा गांधी जी भारत भवन का उद्घाटन करने आई थी तो स्वामीनाथन जी ने मेरे को एक चिट्‌ठी देते हुए कहा था कि इसे इंदिरा गांधी जी को दे देना। मैं जब इंदिरा जी से मिली तो चिट्‌ठी देना भूल गई। उस वक्त इंदिरा जी ने मुझसे पूछा था कि भूरी तुमने अपने बेटे का क्या नाम रखा है। यह फोटो उसी समय का है। जिसे विजय रोहतगी सर ने खींचा था।

मुझे भारत भवन में सब बात याद आ रही है जब मैंने भारत भवन में माल ढोया, ईंटे उठाईं। इस भारत भवन के हर कोने पर मेरा पसीना गिरा। इसी भारत भवन में मेरी पेंटिंग भी लगी हुई है। इस भारत भवन ने मेरे मजदूर से कलाकार बनने की यात्रा देखी है।

आज मैं भारत भवन के स्थापना दिवस समारोह में मुख्य अतिथि बन रही हूं। मैं उस छत के नीचे खड़ी हूं। जिस छत के नीचे मेरे गुरु स्वामीनाथन ने उंगली पकड़कर कला का रास्ता दिखाया। वहीं कपिल तिवारी ने मुझे दूसरा जीवन दिया। मुझे कपिल सर के साथ पद्मश्री मिलेगा।

मुझे लगता है आज भारत भवन में अतिथि बनना पद्मश्री या दुनिया के किसी भी अवॉर्ड से बड़ा है। क्योंकि भारत भवन पहुंचकर मुझे वो सारी बातें आ गई। जब मैं यहां ईंटे ढोती थी। पेड़ के नीचे बैठकर रोटी खाती थी। एक दाढ़ी वाले बाबा मेरे गुरु स्वामीनाथन आए। मुझे उन्होंने मजदूर से कलाकार बना दिया। आज उन सब बातों को याद करके मेरी आंखों में पानी और रोना आ रहा है। मैं स्वामी जी को बहुत ही याद कर रही हूं।’



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