‘मामा है ना’, बेटे का इलाज नहीं करा पा रहा था बेबस पिता, शिवराज सिंह ने थामा हाथ

‘मामा है ना’, बेटे का इलाज नहीं करा पा रहा था बेबस पिता, शिवराज सिंह ने थामा हाथ


Last Updated:

Sehore News : देश के कृषि मंत्री और मध्‍य प्रदेश के पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक गरीब पिता की ऐसी मदद की, जैसी शायद कोई सोच भी नहीं सकता. सीहोर जिले के तालपुरा गांव में जब गरीब बेबस पिता का दर्द …और पढ़ें

केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह ने मंच से बच्‍चे के इलाज के लिए एम्‍स प्रबंधन भोपाल से बात की.

हाइलाइट्स

  • शिवराज सिंह चौहान ने गरीब पिता की मदद की.
  • एम्स में बच्चे के इलाज का खर्च उठाने का वादा किया.
  • जनता ने शिवराज सिंह की संवेदनशीलता की सराहना की.

सीहोर . जब दर्द का बोझ आंखों से बह निकला और लाचारी ने आवाज छीन ली, तब एक नेता नहीं, एक “मामा” ने भरोसे की तरह सामने आकर कहा – “मामा है तो चिंता मत करो.” यह दृश्य सीहोर जिले के तालपुरा गांव में देखने को मिला, जहां केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान एक जनसंवाद कार्यक्रम के दौरान जनता से सीधे संवाद कर रहे थे. कार्यक्रम के बीच में एक ग्रामीण रोते हुए शिवराज सिंह चौहान के पास पहुंचा. उसके चेहरे पर ग़म, आंखों में आंसू और जुबान पर अपने बेटे के दर्द की पुकार थी. उसने बताया कि एक हादसे में उसके छोटे बेटे का हाथ कट गया है और वह भोपाल के एम्स अस्पताल में इलाज करवा रहा है, लेकिन गरीबी के चलते इलाज का खर्च उठा पाना मुमकिन नहीं.

इस मार्मिक क्षण में शिवराज सिंह चौहान ने पल भर भी देरी नहीं की. वहीं मंच से ही उन्होंने सीधे एम्स अस्पताल प्रबंधन को फोन किया और कहा – “इस बच्चे का इलाज बिना देरी और बिना रुकावट के होना चाहिए. जो भी खर्च हो, व्यवस्था हम करेंगे. चिंता मत करो, मामा है ना.” उनकी यह बात सुनते ही वहां मौजूद हर व्यक्ति की आंखें भर आईं. किसी ने यह सोचा भी नहीं था कि एक मंत्री, जो अब दिल्ली में हैं, आज भी गांव के आम आदमी के लिए इस तरह सीधे मदद का हाथ बढ़ा सकते हैं.

संवेदनशीलता की मिसाल बने शिवराज
शिवराज सिंह चौहान की राजनीति में “मामा” की छवि कोई चुनावी जुमला नहीं, बल्कि जनता के प्रति उनकी लगातार दिखती संवेदनशीलता का प्रतीक बन गई है. बच्चों की पढ़ाई हो, बेटियों की शादी, किसानों की फसल या फिर किसी गरीब की बीमारी- उन्होंने कई बार इस बात को साबित किया है कि वे सिर्फ भाषण देने वाले नहीं, बल्कि ज़मीन पर काम करने वाले जननेता हैं. तालपुरा की यह घटना कोई पहली नहीं, लेकिन यादगार जरूर बन गई है- क्योंकि जब सरकारी सिस्टम में फाइलें चलती हैं, यहां एक फोन कॉल से उम्मीद की रोशनी जल गई.

गरीब के लिए ‘मामा’ का संदेश
शिवराज सिंह ने मंच से कहा – “हर गरीब मेरा भाई है, और भाई की तकलीफ में मामा साथ नहीं होगा तो कौन होगा?” यह वाक्य सिर्फ भाषण नहीं था, बल्कि उस पिता के लिए उम्मीद, भरोसा और राहत था, जिसका बेटा अब एम्स में बेहतर इलाज पा सकेगा.

जनता बोली – यही वजह है कि उन्हें मामा कहते हैं
इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर भी लोग शिवराज सिंह की सराहना कर रहे हैं. कई यूज़र्स ने लिखा – “ऐसे नेताओं की जरूरत है जो पीड़ित की आंखें पढ़कर मदद कर सकें.” तालपुरा गांव में भी लोग कहने लगे – “नेता तो बहुत देखे, लेकिन मामा जैसा कोई नहीं.”

Sumit verma

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प…और पढ़ें

सुमित वर्मा, News18 में 4 सालों से एसोसिएट एडीटर पद पर कार्यरत हैं. बीते 3 दशकों से सक्रिय पत्रकारिता में अपनी अलग पहचान रखते हैं. देश के नामचीन मीडिया संस्‍थानों में सजग जिम्‍मेदार पदों पर काम करने का अनुभव. प… और पढ़ें

homemadhya-pradesh

‘मामा है ना’, बेटे का इलाज नहीं करा पा रहा था पिता, शिवराज सिंह ने थामा हाथ



Source link