- Hindi News
- Local
- Mp
- Ujjain
- When Rajan Dada Refused To Take The Envelope Of Honorarium After The Program, He Said That Our Respectful Tribute To Your Guru
Ads से है परेशान? बिना Ads खबरों के लिए इनस्टॉल करें दैनिक भास्कर ऐप
उज्जैन4 मिनट पहलेलेखक: राजेश गाबा
- कॉपी लिंक
पद्मभूषण खयाल गायक राजन-साजन मिश्र, पखावज वादक अखिलेश गुंदेचा और पद्मश्री ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा।
- पद्मश्री ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा ने दैनिक भास्कर से राजन मिश्र की जिंदगी के कई दिलचस्प किस्से साझा किए
बनारस घराने की मशहूर मिश्र बंधुओं वाली जोड़ी अब हमेशा के लिए टूट गई है। रविवार को मिश्र बंधुओं में बड़े भाई पद्मभूषण खयाल गायक पंडित राजन मिश्र का कोरोना की वजह से निधन हो गया। राजन मिश्र ने दिल्ली के गंगाराम अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। खयाल गायकी को जुगलबंदी में गाने वाली देश की वरिष्ठ संगीतमय जोड़ी में ये आखिरी जोड़ी थी। राजन-साजन मिश्र के पारिवारिक मित्र और बेहद करीबी रहे पद्मश्री ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा ने राजन मिश्र से जुड़ी अपनी यादें साझा की। गौरतलब है कि उमाकांत गुंदेचा भोपाल के चिरायु अस्पताल में कोरोना का इलाज करा रहे हैं। गुंदेचा ने दैनिक भास्कर के रिपोर्टर राजेश गाबा से राजन मिश्र की जिंदगी के अनछुए पहलू साझा किए।
पद्मश्री ध्रुपद गायक उमाकांत गुंदेचा ने बताया कि बहुत बुरा दिन है। ये कोविड कहां जा कर थमेगा ? राजन दादा का जाना भारतीय शास्त्रीय जगत की अपूरणीय क्षति है। बनारस घराने की गायकी का आधार स्तंभ थे दोनों भाई। जोड़ी टूटने का दुख क्या होता है मैं अभी कुछ समय पहले उस दुख से गुज़रा हूं। जब मैंने अपने सह गायक, जोड़ीदार और अपने भाई ध्रुपद गायक रमाकांत को खोया था। राजन भाई के साथ बहुत सी स्मृतियां है। हमारी पहली मुलाक़ात 1976-77 में दिल्ली में हुई थी।
वे भोपाल हमारे गुरूकुल पर भी आए थे और विद्यार्थियों को आशीर्वाद भी दिया। वे हमेशा कहते थे कि हम दो नहीं चार भाई है। वे मुझे और रमाकांत को भी अपना भाई कहते थे। हम लोगों ने कई बार मंच साथ में साझा किया। राजन दादा का जाना संगीत जगत में एक खालीपन भर गया। वे अपने सुरों के जरिए आने वाली पीढ़ियों के दिलों में हमेशा जिंदा रहेंगे।

मुझे याद है हमारे उज्जैन के संगीत के प्रारंभिक संगीत गुरू पं प्रमोद शास्त्री जी का उज्जैन में हम लोगों ने सार्वजनिक सम्मान करने की योजना बनाई। उन्हें पं राजन-साजन मिश्र जी का गायन बहुत पसंद था। हमने राजन दादा को यह बात फोन पर बताई और कहा कि अगर आप उनके सम्मान समारोह पर उज्जैन में गाएंगे तो यह इस कार्यक्रम की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी। दादा ने तुरंत अपनी डायरी देखी और हां कहा। हमने उज्जैन विक्रमकीर्ति मंदिर में यह सम्मान आयोजित किया।
पं राजन साजन मिश्र उज्जैन आए और उन्होंने पं प्रमोद शास्त्री जी के आग्रह पर उनका पसंदीदा राग छायानट सुनाया। यह कार्यक्रम आज भी उज्जैन के सर्वोकृष्ट कार्यक्रमों मे शुमार किया जाता है। अगले दिन जाते समय मैं जब उनको विदायगी स्वरूप लिफ़ाफ़ा (मानदेय) देने लगा तो बोले तुम हमारे छोटे भाई हो। तुमने अपने गुरू का सम्मान किया हमारी तरफ़ से भी उनको यह आदरांजलि और लिफ़ाफ़ा वापस कर दिया। ऐसे महान गायक सदियों में विरले ही होते हैं। उनमें गजब का सेंस ऑफ ह्यूमर भी था। जब भी मिलते तो नया चुटकुला सुनाते। हमेशा खुशमिजाज रहते थे। उनके चेहरे पर नूर था अपनी संगीत साधना का। उनके साथ समय का पता नहीं चलता था। हमारे परिवार के लिए एक अपूरणीय क्षति है।
अकेले पड़ गए साजन मिश्र
पंडित राजन मिश्र का अपने छोटे भाई पंडित साजन मिश्र के साथ एक खूबसूरत रिश्ता रहा है। ये एक ऐसा रिश्ता है जहां पर दोनों ने ना सिर्फ साथ में संगीत जगत को काफी कुछ दिया। बल्कि हर दुख-सुख में साथ भी खड़े रहे। लेकिन कोरोना की इस महामारी ने इस जोड़ी को हमेशा के लिए तोड़ दिया और अब पंडित साजन मिश्र अकेले रह गए।