जिंदगी जिंदाबाद: अपने पोते को टीवी पर देख की आस ने दिलाई अस्थमा मरीज को कोरोना से लड़ने की ताकत

जिंदगी जिंदाबाद: अपने पोते को टीवी पर देख की आस ने दिलाई अस्थमा मरीज को कोरोना से लड़ने की ताकत


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गुना10 मिनट पहले

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गुना। मैं 82 वर्षीय बुजुर्ग और मेरी जीवनसंगिनी 75 वर्षीय 15 अप्रैल से प्रयास के बाद 18 अप्रैल को मेरा सिविल हॉस्पिटल गुना में कोविड-19 टेस्ट का बमुश्किल मेरा नंबर आया। जिसमें मेरी पुत्रवधू ने हम दोनों का इस विषम परिस्थिति में साथ दिया। हमें घर के बाहर सूचना बोर्ड लगाकर बंद कर दिया गया। किसी प्रकार की कोई दवाई नहीं दी गई। 2 दिन बाद जब हमने मुख्यमंत्री हेल्पलाइन पर शिकायत की तो हमें किट उपलब्ध कराई गई। यह प्रशासन की बड़ी चूक है, प्रशासन के ऊपर भी अधिक काम का दबाव है मैं समझता हूं। मुझे तो सिर्फ एक ही बात का जुनून कि मुझे जिंदा रहना है और अपने पौत्र को टीवी पर देखना है जोकि फुटबॉल का खिलाड़ी है। वह कोलकाता में पिछले 4 साल से कई बड़े मैच खेल चुका है। मध्य प्रदेश से भी संतुष्ट ट्रॉफी का कैंप किया है। खेल के के विषय में मैं ज्यादा तो नहीं जानता लेकिन मेरी जिंदगी की एक ही तमन्ना है की मैं अपने पौत्र को टीवी पर देखूं। जिसमें लाखों दर्शक तालियां बजा रहा हों , तो मैंने निश्चय किया कि मैं कोरोना से जंग लड़ लूंगा। मैं सुबह शाम जमीन पर छाती के बल लेटता था। एक तकिया छाती के नीचे और एक घुटनों के नीचे लगाता था। नाक से सांस लेता था और मुंह से छोड़ता था। साथ ही, दिन में 4 बार गरम पानी की भाप लेता था और सुबह शाम दूध हल्दी और गुड़ के साथ लेता था। मैं इन दिनों में नॉर्मल पानी नहीं पीता था नींबू और सेंधा नमक के साथ गुनगुना पानी कलेटा था और अभी तक पी रहा हूं। आज मैं अपने आपको स्वस्थ और हल्दी महसूस कर रहा हूं। मेरी सभी पीड़ित भाइयों से एवं बच्चों से निवेदन है वह अपनी दिनचर्या में इसको शामिल करें और कोरोना से ना डरे ,डर के आगे ही जीत है। यह विचार हैं गुर्जर कॉलोनी निवासी ८२ वर्षीय चम्पालाल सुमन के। वे अस्थमा से पीड़ित रहे हैं। अस्थमा का इलाज भी उनका कई वर्षों से चल रहा है और वे निरंतर दवाई लेते थे। उनकी पत्नी श्रीमती जानकी देवी भी कोरोना पॉजिटिव आयीं। वे भी बीपी की मरीज हैं। उनका सीटी स्कैन में नंबर २५/२५ था। इन दोनों ने ही अपने आत्मबल के विश्वास पर घर से ही रहकर कोरोना से जंग जीती। उन्होंने बताया की पहले तो काफी टेंशन हो गयी थी की किस तरह से ठीक हो पाएंगे। अस्पताल की हालत सभी को पता ही थी। तो यह तय किया गया की घर पर ही रहकर डॉक्टरों के मार्गदर्शन में इस बीमारी से लड़ा जाए। इसके बाद मेडिकल किट हमें भिजवाई गयी। नियमित दिनचर्या से हम दोनों १० दिन में कोरोना से जंग जीत गए। इसके पीछे आत्मबल का सबसे ज्यादा सहारा रहा। दोनों पति -पत्नी एक दूसरे के सम्बल बने और साथ मिलकर कोरोना से लड़ाई लड़ी। वे बताते हैं की सबसे बड़ी आस यही थी की अपने पौत्र को टीवी पर देख पाएं। इसी उम्मीद ने हमें सबसे ज्यादा आशा दी और हम कोरोना से जीत पाए। कोरोना एक गंभीर बीमारी है लेकिन डॉक्टर की सलाह और आत्मबल के साथ इसे हराया जा सकता है। हर स्थिति में आप सकारात्मक बने रहे , ये सबसे ज्यादा जरुरी है।

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